पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२८

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परिच्छेद]
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कुसुमकुमरी

परिच्छेद 1 कुसुमकुमारी दिन से आज तक को ऐसी कोई रात नहीं बीती होगी कि जिस रात को पलंग पर लेटने पर मैं उस पंडे की कही बातों कोदो चार बेर याद न कर लेती होऊंगी।" बसंत,-" मगर वह रडी बड़ी ही हरामज़ादी थी कि उस कंबख्त ने अपने को रानी जाहिर करके तुम्हें उस पंडे से लेकर तुम्हारा धर्म, कर्म, यहां तक कि जन्म तक बिगाड़ डाला!" कुसुम,-" इसमें तो कोई शक नहीं कि वह बड़ी ही शैतान थो, मगर दुनियां के कारखाने देख-देख-कर यही बात दिल को धीरज देती है कि, ' अपने-अपने राज़गार के लिये अकसर लोग खोटे से खोटा काम भी कर गुजरते हैं। फिर उसे क्या दोष दिया जाय ! " बसंत,-"अच्छा, तब ?" कुसुम,- फिर तो मैं उसके साथ यहां आई और कुछ दिनों में मैंने इस बात को बखूबी समझ लिया कि मैं किस जगह आई है और मुझे अब कैसे-कैसे काम करने पड़ेंगे। "यह बात मैं बेशक कहूंगी कि चुन्नी ने ऐसे लाड़, चाव, दुलार, प्यार और नाज़ोनखरे से मुझे पाला और इस तरह मुझे रक्खा कि जैसे मैं राजा के घर ही रहती होऊ; और यह भी मैं मानती हूँ कि वह मुझसे दिल से मुहब्बत भी करती थी, पर यदि सच पूछो तो मैं उससे दिल से नफरत करती और उसे अपनी पूरी वैरिन समझती थी; पर मैंने अपना दिली हाल, उस पंडे की बात. या उन दोनों तावीज़ों का हाल उसे रत्तीभर भी नहीं बतलाया और न अपनी नफ़रत ही उस पर कभी-भूलकर भी जाहिर की। "यहां आने पर मेरी तालीम होने लगी, एक लाला मुझे हिन्दी और फ़ारसी पढ़ाने लगे और चार उस्ताद गाने, बजाने और नाचने की तालीम देने लगे। "तुम यह बात सुनकर हँसना मत; क्यों कि, प्यारे! उम्रभर में आज ही मैंने अपने दिल का दर्वाजा फ़क़त तुम्हारे ही सामने खोला है, इसलिये जो-जो बातें सञ्ची या मेरे दिल में भरी हुई हैं, उन्हें ज्यों की त्यों मैं तुम्हें सुनारही हूँ। 'पढने, लिखने. गाने, बजाने और नाचने में मेरा दिल खब ही लगा -यहा तक कि कमी मैंने अपने उस्तादों की मिसकी या