२१२ स्वगायकुसुम । (सप्तावनवा AF.LARIA दोनो हाथों में दो लड्डु उठा लिए, चमेलो चार लेने के लिये थाली ही पर गिरपड़ी, प्रद्य म्न ने चमेली को ढकेलकर थाली पर अपन अधिकार जमाना चाहा ! उस पर दोनो की गुत्थम-गुत्था होगई। मदन ने छोटे भाई को, चमेली से कमज़ोर जान कर भाई की मदद की, दी चार धौल-पप्पड़ जड़े भी, पर कुसुम ने बीच-बचाव करके सभोंको अलग किया और सबके आगे गिनती में बराबर लड़ रख दिए! अब दू रा उत्पात शुरू हुआ। एक लड्ड, तोड कर उसमें से जरासा जबान पर रक्खा था कि वह अच्छा न लगा, मो नह पैरों से कुचल कर दूसरे लड्डु का चूर किया गया। उसके बाद तीसरा, फिर चौशा! योहीएक एक करके सब लड्डु मीम-मास डाले गए ! उनमें से कुछ तो ज़मीन में बिखेरे गए कुछ मारे बदन में पोते गए, कुछ कुसुम के सारे बदन में उबटने की भाति लेपे गए और कछ फिर से नन्हें नन्हें हाथों से बांधे जाने लगे. पर बंधे नही! चमेली ने एक टुकरा लड्डु लेकर कुसम के मुह में ठंसना चाहा, पर उसे ढकेल कर प्रद्युम्न ने तो कुसुम के मुंह मे एक टुकग डाल हो दिया : इस आनद मे बैठी हुई कुसम स्वर्ग का अपार सुख लूट रही थी, कि इतने ही में बसन्तकुमार ने वहीं पहुंचकर और इस बाललीला पर मुग्ध होकर फुलुम से कहा, "खूब ! तुमने तो अच्छी बन्दर-ज्योनार मचा रक्श्वी है !" कुसुम,-(मुस्कराकर ) "आओ लुम भी हमारा साथ दो।" बसन्त कुसुम के पास आकर बैठ गया, और चट मदन ने उसके मुहं में लड्ड डालना चाहा, पर बसन्त ने उसे डांटकर अपना मुहं फेर लिया! इतने ही में कट कुसुम ने एक टुकरा लडडू बसन्त के मुह में डाल औरत्यारी बदल कर कहा.--बर ! जो मेरे बच्चों को कमी डांटा है, तो अच्छा न होगा!" यह सुन मदन ताली बजा कर नारने लगा, और बसन्त ने मन ही मन क सुम के स्वर्गीय समाव का सगहा! इतने ही में गुलाब भी वही र गई और यह तमाशा देखकर बेतहाशा खिलखिला उठो, ईकर बोली,-'जीजी: आज उबटना तो खूब लगाया है।" क्सम -( उम बात का कुछ नवाब न देकर ) गुलाय ! जरा
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