२१० स्वगायकुसुम सत्तावनवां परिच्छेद "मधुरण समाप्यते." "सदन मधुरं, बदनं मधुरम्, वचनं मधुरं, रचनं मधुरम् । चरितं मधुरं, भरितं मधुरम्, सकलं मधुरं, सकलं मधुरम् ॥" (माधुरीविलासे.) सुम दालान में बैठी हुई है औरदो तीन लड़के-लड़रियों नाक ने उसे घेर रक्खा है ! अब तक गुलाबदेई को तीन ki लड़के हुए हैं, उनमें दो बेटे है और एक बेटो । सबसे - बड़ा बेटा छः वरम का है, उसका नाम मदन है; उससे छोटी लड़की चार बरस की है, नाम उमका चमेली है; और मन्त्र से छोटे लड़के का नाम प्रध म्न है, यह अभी कुल ढाई बराल का है। कसुम ने जो प्रतिज्ञा की थी कि.--'मुझे कोई बाल-बच्चे न होगे;' यह सच हुआ. क्योंकि उसे कोई सतति हुई ही नहीं. और न अब होने की कोई आशा ही थी! क्योंकि कुसुम यह चाहतीही न थी, और जब तक एक समझदार औरत लड़का होना न चाहे, तब तक उसे संतान हो ही नहीं सकती! किन्तु कदाचित कुसुम अपने पेट के भी बच्चों को इतना प्यार न करती, जितना कि यह गुलाब के बच्चों को जी-जान से चाहती थी। और सच तो यह है कि इन बच्चों को जितना कुसुम प्यार करती, उतना इन्हें न गुलाच ही चाहती और न वसन्त- कुमार ही !!! दो पहर के समय खाने-पीने से छुट्टी पाकर कुसुम दालान में बैठी हुई थी और तीनो लड़के उससे अपनी-अपनी फर्याद कर _मदन ने कहा, देखो मा ' मुझे चाची ने मारा है "
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