२०६ स्यायिकसम । (खोवनवा - - - - - - - - - - - म करना कि जिसमें प्यारी कुसुम का ज़रा भी जी दु गुलाब,-(कसम खाकर ) और कहो ?" यह सुनकर बसन्त ने छुरा दूर फेंक दिया और गलाब को गले लगाकर कहा,-"बस, प्यारो ! बस।" कसुम को भी दिल्लगी की सूझी, इसलिये उसने भी झपटकर छुरा उठा लिया और बसन्त से कहा,-"वस अगर मेरी जान प्यारी हो तो तुम भी एक क़सम खाओ।" गलाब,-"मगर, जीजी! तुम तो अभी आत्महत्या न करने को कसम खाचुकी हो न? " कुसुम,--"गुलाब ! तू ज़रा चुपचाप रह । ( बसन्त से) मेरी कमम के भरोसे न रहना, इसलिये यदि तुम कसम न खाओगे तो ----- बसन्त,--( उसे रोक और गङ्गाजली उठाकर ) "कहो, प्यारी ! कहाँ ! तुमसे हम हर तरह हारे हैं ! " कुसुम,-"यह कि जैसा तुम मुझे प्यार करते हो, वैसा ही गुलाब से भी प्रेम का बर्ताव करना और कभी भूल कर भी ऐसी कोई बात न कर बैठना. कि जिसमें, गुलाब का जी दुखी हो । यदि कभी तुमने गलाव को नाराज़ किया तो समझ रखना कि, बस, कुसुम को उम्र पूरी होगई ! फिर मैं कलम का ज़रा भी ख़याल न करूंगी और अपनी जान देदूंगी।" बसन्त,-(कसम ग्वाकर) "और फ़र्माओ?" कसुम,--"बस, आज यहीं तक!" वसन्त,-"क्यों ? यहीं तक क्यों ? कुछ और आगे बढ़ो !" कुसुम,-"क्या मैं तुम्हारे ताबे हूं कि तुम्हारा हुक्म मान लूंगी!" बसन्त,-"जी, नहीं ! ताबेदार तो बन्दा है!!!" यह सुन और बसन्त के गले मे बाहें डालकर बड़ी मुहब्बत के साथ कुसुम ने उसके गालों को चूम लिया और कहा,-"क्यों, प्यार ! मेरी बातों से तुम नाराज़ तो नहीं हुए ? सच कहो, तुम्हें मेरी कसम, नाराज़ तो नहीं हुए ?" बसन्त ने कुसुम के गालों को बार बार चूमते हुए कहा,- नहीं. प्यारी ! भला मैं तुमसे कभी नाराज हो सकता हूं!" क्यों प्यारे पाठकों कहिए' सुखइसमें है या
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