परिरुछन्द) कुसुमकुमारी। , इक्यावनवां परिच्छेद. A PLkW CS आशा.
- आशा दुःख निवारिणी, सुरखकरी, सौभाग्यसम्पत्करी,
नानाख्यानसुखानुभूतिजननी शश्य द्विनं दालया। सर्वत्र जयावहा, सुचिरा, रम्या, गुरुणां गुरु, सा श्रेष्ठा, परदेवता. भुवि नणां, दिव्यातिदियोपधिः॥" (नीतिरत्नावली.) POAD सन्तकुमार जब भयानक रूप से घायल हुआ था. तब उसके व चंगे होने ना कुसुम ने उसकी कमी सेवा की थी, यह 993यान हमारे पाठक लोग शायद अभीतक न भूले हॉग ! इसलिये उन्हें हम केवल इतना ही कहकर समझा देना त्राइन है कि, 'जैमी सेवा कुमम ने बसन्त की की थी, उसले कहीं बढ़कर गुलाब कुसम की सेवा करने लगी ! उसने खाना, पीना, सोना, आगम करना, आदि सारे सुख छोड़ और अपने शरीर और जान को मिट्टी में मिलाकर कुसुम की ऐसी सेवा की कि धीरे धीरे उसके बचने की आशा हुई : ज्यों ज्यों कुसुम के अच्छे होने के लक्षण दिखलाई देने, त्यों-त्यों गुलाब और भी मुस्तैदी के साथ उसकी सेवा करती और बड़ा मजातो यह था कि अभी तक गुलाब ने कुसम की रहस्य से भरी हुई जीवनी का कुछ भी नत्र नहीं जाना था, बरन कम्म के खत में वह और भी हैरान होगई थी. पर फिर भी उसने जी- जान से ऐसी सेवा कसम की की कि जैसी मां बेटियों की, या बहिन बहिनो की करता है ! घरा मत,गुलाजगदीश्वर तेरी सेवा की मजूरी तुझे जरूर देगा यहां पर एक बात और भी बड़े अचम्भ की थी: अर्धात ज्यों-ज्यो कसम होने लगी,त्यो-त्यों बसन्त कामीपागलपन घटने लगा आठ दिन काम ने भरपूर होश हवाश में आकर आंखें खोली और धीमी आवाज से यों कहा,-"मैं कहां है?" गुलाब क स न की बोली मनकर बहुत ही खुश हुई. उसने ईश्वर कं धन्यशन देकर कहा वहिन 'तुम अपनं बाग ही मे ताहाँ?*