पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१९८

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परिच्छद) समकुमारी। १८६ - . राक्षसी, गुलाब ! ले ! आज नेग मनोकामना पूरी हुई ! भव तू ढोल मजा और सोहर गा! बस, मेरी-तेरी यही गाखिरी भेंट है! तू निश्चय जान फि, चाहे वसन्त के बिना कुसुम ठहर भी सकै, पर कुसुम के बिना असन्त पल भर भी संसार में नहीं रह सकता !!! " यों कहकर पागलों की तरह रोता-पीटता, समता-ममता और मपटता दौड़ता बसन्तकुमार बाग में पहुंचा। उस समय सुबह की सफ़ेदी चारों ओर फैल गई थी और वैद्यराजजी कुसुम को बराबर 'उलटी' करा रहे थे ! बेचारी गुलाब यह हाल देखकर सन्नाटे में आगई ! इस समय उसके कलेजे में बसन्तकुमार का तीखा ताना जरा भी नहीं लगा, परन यह बहुत ही घबराहट के साथ कुसुम का पत्र उठाकर कांपती हुई पढ़ने लगी ! पत्र की पंक्तियां ज्यों-ज्यों कम होती जाती थीं, त्यो त्यो गुलाब के कलेजे के टुकड़े हुए जातेथे ! सारा खत पढ़ लेने पर यह,-"हा बहिन, कुसुम !इतना कहकर छाती पीट-कर रोने लगी! लीडियों में चारो ओर से घिरकर उसे बहुत समझाया. पर आज गुलाब के कंटीले दिल ने यह चोट खाई थी कि जिसकी उपमा ससार में हई नहीं ! हम यह बात दृढ़ता से कह सकते हैं कि गुलाब को शायद बसन्तकुमार के मी मरजाने का उतना दुःख न होता, जितना कि कुसुम के खत पढ़ने से हुआ! घंटों तक वह छाती पीटनी, सिर पटकली. पछाड़ें खाती और जोर जोर से चिल्ला चिल्ला कर रोती रही। फिर जब रोने-धोने से वह जरा शान्त हुई, तब घर गाड़ी मंगवा कर कुसुम को देखने बाग चली! यहां पर इतना और समझ लेना चाहिए कि. घर से बाग तक भीतर ही भीतर जो सुरंग गई थी, उमका हाल गुलामदेई अभी तक नहीं जानती थी; कोंकि उसके आने पर वसन्त और कसुम,-इन दोनों ही ने मुरग के रास्ते से आना-जाना बंद कर दिया था। हां, यदि कभी ऐसा ही काम पड़ता. तो कसम सुरंग के रास्ते से अपने श्राने कि खबर चुपचाप बसन्त के पाम भेज देतो, तर वह गुलाब को घर में दूसरी जगह टहला कर लेजाता और इस असें में कसम आजानी; और यदि कभी यसन्तकुमार सुरग की राह से याग में जाता, तो गुलाब की आख पचा कर जाता था; पर ऐसा शायद ही कमी होता था।