पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१९७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८८ x Xkx westater-* छियालीसवां परिच्छेद,

  • PETER RELAT KArre*

कुसुम की खबर ! " विकृन्तनीय मर्माणि, देह शोषयतीव मे। दहतोवान्तरात्मानं, क्रूरः शोकाग्निरुत्थितः॥" (करुणाकरे ) र बजे गन कोप्यादे ने जाकर बसन्तकुमार को आवाज दी! चा पहिली ही आवाज मे वह चिहुंक कर उठ बैठा और

  • बोला,-'कौन है ?"

प्यादे ने जल्द उसे पाने के लिये कहा, जिसे सुन वह घबराया हुभा नीचे उतर आया और बोला," कहो क्या है ? पाई ने कहा, यह चीठी लीजिए; इसे हुलासीने दी है, और आपको जल्द बुलाया है! नहींमालूम कि बीशीजी ने क्या खा लिया है!!! "! हा!! राम !!! " इतना कहते-कहते तलमला-कर बसन्त- कुमार वहीं गिरने लगा, पर उस प्यादे ने थाम लिया! यदि उस प्यादे ने उसे थाम न लिया होता तो आज उसने अपने को बहस जल्द कुसुम के पास पहुंचा दिया होता!" निदान, वैद्य बुलाने की ताकीद करके बसन्त ने प्यादे को बिदा किया और आप चिट्ठी लिए हुए अपने शयन-मन्दिर में गया। प्यादे के हल्ला मचाने से गुलाब की भी नीद उचट गई थी, पर उमने प्यादे की बातें कुछ भी नहीं सुनी थी: सो बसन्त के हाथ में चिट्ठी देखते ही वह जल-भुन-कर खाक होगई और ऐंठ कर योली,- "क्यों. बुलावे की चिट्ठी आई है, क्या?" बसन्त उस बात का कुछ जवाब न देकर और एक कुर्सी पर वैठ कर रोशनी के सहारे पत्र पढ़ने लगा । किन्तु यह क्या ! चिट्ठी पूरी होते-होते उसने जोर से, 'हा ! प्यारी! कुसुम !!!' यों कहकर अपने कलेजे में ज़ोर से एक मुक्का मारा और कुरसी से गिरकर वह बेसुघहोगया! उसकी यह दशा देख गुलाब फिर स्थिर न रह सका, और झपट कर बसन्त के मुखड़े पर गुलाबजल छिड़कने और पखा मालमे लगी । योसी देर मे बसन्त को होश हुआ तब वह उठा और मस पिता का गुलाब क सामन फेंकफर उसने यों कहा ले