पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१८४

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परिच्छेद) कुममकुमाग माग १७५ पड गई है फिर उसे छोड कर भी लगता है? नो. : जिनका नाम आप दिन मात गेइमार कान -नाइन् आश! य यों भाइको शिकारे मामा में दुम का चांद उदय हुआ,"-या मधुर लावा भातर हामी हां टल गई ! पाठकों ने उन्हें कदाचित या ईया - इनमें एक सुन्दरी कुसुमकुमारी, और दुसरा युवक मरकुमार था ! दुल्लुम उमा भाग अ मर न लम्बी टी की ठान रना मर रही थी, पर मानतानार अरर सकी केशरचना का मार कर अपने मन मा कन्क चोटी गुही! फिर इन नबलिख्ख से मवार का इम सुन्दरी के मोलह शृङ्गार का दर्शन किया लोई के कोने म इना से लटें लटक रही थी ! उसकी बद मंद मंद बन ग ट बहलन्दगासुलभ चनलता. वह नमकी- महारान वयःसंधिमंऋपण माधुय, देवदर्लnिara यानि पिन, का विवाह सारे अधोध - समीपक मिलकर संन के विले मन को मुराध का दिया: चोकमावस्या का अतुल सौन्दर्य कलमके प्रत्येक अंग से उछल रहा था वह टेडी गई इस गलन की ओर फिरो, और विम्बनिनिदिन मनोहर अधरी के हमी मी बाग बहाने बहाते बाली.--"लो, प्यारे जोश लुहारे झगड़े से लगाकर भाज मग तुम्हारे मन-लायम स्मिा पि.या कि नहीं?" चुटकी भर कर कहा-"प्यारी, कुनुमा बन्यभाग्य! भला आज हम बजने पर रकम नारा : पर इसमें तुमने कला किया गहनो मेरे हाथ की कारीगरी है। कुसुम,-'अचला : यह बात है." इस पर सन्तकुमार ने एक कहकहा लगाया और पलग पर से एक तकिया रवींच कर कुसुम को आग लषी लाना: कुसुम,-वान ने बानर का नो स्म निगला है!!" वमन्न जापा!" कुसुम-- "और..", लिग किसलिये बिछी है?" परवात --' पर पर सोचे सं तुम्हारा भोला मुखडा में दिसा गा