कुसुम,-( सलाम करके) “हुजूर की दुवा से खर्च की कमी नहीं है। बस,मुझे घर तक पहुंचा देने के वास्ते हुजर का अर्दली काफ़ी है।"
मजिष्ट्रेट,-"टुमारे पास रुपया कहां है ?"
कुसुम,-"जो बचे हुए जेवर मेरे बदन पर मौजूद हैं, उनमें से एक के भी बेंचने से खर्च के लायक रुपए होजायंगे।"
मजिष्ट्रट,-" नई, टुमको ज़ेवर बेचना नहीं होगा, टुम बहुत सडमा उठाया। हम जो कहा, सो मानो।"
कुसुम,-"जो हुज़र की मर्जी ।”
यों कहकर वह हाथ जोड़कर साहब के आगे खड़ी होगई और बड़ी आजिजी के साथ कहने लगी,-"अगर इस लौंडी की एक अर्ज कबूल हो तो यह बयान करे।” मजिष्ट्रेट-(ताज्जुब से) "क्या बाट है ?"
कुसुम,-" अगर हुज़र मंजूर करें !”
मजिष्ट्रेट,-"टुमारा डिल इस वक्ट सडभे मे गर्क है, अगर किसी टरह टुमको खुशी हासिल हो टो बयान करो: अगर हमारे अखटेयार के बाहर बाट न होगा टो करेगा।"
कुसुम,-" हुज़ूर को खुदा लाट बनावे, हुजूर ! जमादार का कुसूर माफ़ करं।"
मजिष्ट्रेट,-(ताज्जुब से) "ऐं ! जिस नालायक की लापर्वाई से टुमारा सब लोग डूबकर ला पटा होगया, उस पर टुम इटना रहम क्यों करटी है!
कुसुम,-" इसमें इस बेचारे का कोई कुसूर नहीं है। हुज़र ! सितारे की गर्दिश के आगे इन्सान का कोई चारा नहीं चलता।"
मजिष्ट्रेट,-" अच्छा, फकट टुमारी खुशी का वास्टे हम उस नालायक का कसूर माफ़ करटा ( जमादार की ओर घूमकर) टुम फकट इम्म लड़की के कहने से मांफ़ किया गया. अगर आइंडः अपनी ड्यूटी में गफलट करेगा टो सख्ट सजा पाएगा।"
यह सुन मानो,जमादार की जान में जान आगई, पर उस नालायक ने कुसुम की ओर एहसानभरी आखों से देखना तो दूर रहा, खोटी नज़रों से घूरकर देखा! कुशलयही थी कि उसके उस इशारेको किसी ने देखा नहीं। फिर मजिष्ट्रट ने ताकीद करके एक अर्दली को कुसुम के घर तक पहुंचा आने के लिये हुक्म दिया और पच्चीस रुपए खर्च के लिये कुसुम के हाथ में दिए। फिर वह साहवको सलाम करके उनसे विदा हुई उस समय भी उसके साथ था