कुसुमकुमारी। मैं प्रायः यहां आया करता हूं।" कुसुम,--"तो क्या, आपने यहां पर कमी चुन्नी को या मुझे मही देखा था?" ज्यम्बक...-"नही, कभी नहीं; क्योंकि न तो मैं वेश्यागामी होई और न मैंने यहांकी रण्डियों के देखने का ही कमी इरादा किया था। मतलब यह कि फिर मैने चुन्नी की सूरत कमी व देखी और न तुझी को देखा।" कुसुमकुमारी ने कहा, "बैर, ये सच बातें तो हो ही चुकी, पर अब यह बतलाइए कि श्रीजगदीश को जो कुछ भेंट-पूजा चढ़ती है, उसे कौन लेता है ?* व्यस्कक ने कहा.-"भेंट-पूजा कई साह की होती हैं, उनमें जो रुपए-पैसे, गहने-कपड़े, ज़र-जवाहिर चढ़ते हैं, उनमें से कुछ तो श्रीजगदीश के भण्डार में जाते हैं. कुछ वसमान पुजारी लेलेते हैं और कुछ उन पण्डों के हाथ लगते हैं. जिनकायजमान बह मेंट पूजा बढ़ाता है। इसके अलावे यदि कोई स्यावर, अर्थात 'भूसम्पत्ति' चढ़ाई जाती है, तो वह बिल्कुल श्रीजगदीश के सण्डार के कबजे में ही रहती है। और जो कन्याएं बढ़ाई जाती है, वे उन पण्डों की होती हैं, जिनके यजमान उन्हें बढ़ाते हैं। उन कन्याओं पर पण्डो का पूरा पूरा अधिकार होता है और वे उन कन्याओं के साथ यथेच्छ व्यवहार कर सकते हैं। कुसुम ने कहा,-"क्या आप कृपाकर मुझे यह बतलायेंगे कि उन कन्याओं के साथ पण्डे कैसे कैसे बर्ताव करते है ? व्यम्यक,-'बर्ताव की बालें अब तुझमे मैं क्या कहूं ? वास्तव में उन बेचारी कन्याओं के साथ बड़ा अत्याचार किया जाता है और उन ( कन्याओं) का चरित निर्मल नहीं रहने पाता! कोई कन्या पण्डे की भोग्या बनतो हैं, कोई सयानी होने पर स्वाधीन होकर वेश्यावृत्ति करने लग जाती हैं, कोई किसीके घर बैठ जाती हैं, कोई किमीसे विवाह करलेती हैं. कोई पण्डा के द्वारा लोगोंको प्रसादस्वरूप दे डाली जानी हैं और कोई किसी न किसी के हाथ बेच दी जाती हैं। ऐसे ऐसे सैकड़ों तरह के अत्यार उस मनाथ कन्याओं पर हुआ करते हैं, जिन्हें देखकर और स्वयम् पण्ड पाकर बमें ओ से बह बास चाहता है कि इस
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