पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१७४

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परिद ) कुसुमकुमारी। pm - दे डाली, यह भी तुझे मालूम ही है। तूने मोतीमिह की सम्पत्ति उन्हें पुनः दे देनी चाही थी, या इसका जो कुछ नतीजा हुआ, वह तुझसे छिपा नहीं है, यदि मोतीसिंह के भाग्य में यह सम्पत्ति भोगनी बदी होती, तो वह उनके हाथ से निकल ही क्यों जातो ? जिस पिशाची चुन्नी ने बड़ी बेरहमी के साथ मोतो सिंह को मार कर उनकी सारी दोलत हश्चियाली थी, फिर से जीकर उसी पिशाची बुशी की नावेदारी करना और उसले अपने खून का बदला न लेना' मोतीसिह के अद्भुत कर्मभोग का पता बतलाता है या नहीं? अपने सो माई के ब्याह की मजलिस में नाचने जाना और अपने खास पति के व्याह की महफिल में दिल खोलकर अपने बाप-भाइयों के सामने नाचना, तुझे किस कर्म के भोग का पता बतलाता है ? बसन्तकुमार के साथ तेरी कार की जान-पहि- धान था रिश्तेदारी थी ? उस नाव के उलटने पर केवल तुही कैसे जीती वषी और बसन्तकुमार के हाथों ही क्यों काल के गाल से निकाली जा सकी ? यह भी होसकता था कि तेरे एवज़ में वसन्तकुमार उस नाव पर के डूबे हुए किसी और ही मनुष्य को निकालता ? अस्तु, इस संसार में आंख पसार कर देखने से तुझे इस तरह के एक नहीं, कहोरों दृष्टान्त नित्य ही दिखलाई देंगे; उनपर यदि तू खूब ध्यान देकर विचार करेगी तो तुझे यह बात भली भांति विदित हो जायगी कि, ' इसकर्ममय संसार में मनुष्य अपने सचित, प्रारब्ध और क्रियमाण, इन त्रिविध कर्मों के फलों को निरन्तर भोगा करता है, और उस कर्मफल के भोग कराने में उसके बहुत से वे सहायक भी समय पर मा जुटते हैं. जिनके साथ उसका कोई न कोई प्राकन्न सम्बन्ध रहता है । मेरी इन सब बातों का निचोड़ यह है कि, 'जैसी हो होतच्यता, वैसी उपजै धुद्धि। होनहार हिरदे बसै, विसरि जाय सब सुद्धि इलिये इस संसार में आकर, 'हारिए न हिम्मत घिसारिएन हरिनाम, जाही विधि राखै राम ताही विधि रहिए पण्डाजों की अद्भुत बाते सुनकर कुसुम सन्नाटे में आगई और देरतक सिर झुकाए हुई मन ही मन वह कुछ सोचती रही। इसके बाद उसने व्यापक की ओर देखा और कहा,-" पण्डाजी, आप के मान किन्तु सब उपदेश को सुनकर मेरो मान खुल गई