परिमा) कुसुमकुमारी। "तुम कौन हो ? यह सुन और कुसुम नया बसन्त की ओर बार-बार देखकर उस कोढ़ी ने कहा, -"मेरा नाम अयम्बक है और मैं श्रीजगनाथ जो का पण्डा ई।" कुसुम ने कहा,--"अहा. आप ही जगन्नाथजी के पण्डा हैं ? श्यम्यक,-"हां, इसमें कोई सन्देह नहीं।" कुसुम ने कहा,-"हो. उसाइए. कमरे के अन्दर आकर विरा- यह सन और अपने मैले कपड़ों की ओर देखकर त्र्यम्बक ने कहा.---"नही. मैं इस हालत में इम कमरे के अन्दर थाने काबिल कसम ने कहा.---'स्वैगनी में राम के चयन पर चलती हूं।" यो कह कर और गुलाम की शशी अपने हाथ में लेकर कसम अम्मान के साथ उठ खड़ी हुई और बाग के चबूतरे की नरफ चली। तबतक एक ग्विदमतगार ने उसके इशारे से उस चबूतरे पर कई कलियां बिछादी थीं। निदान, वहा जाकर कम्म 1 एक कसी पर बैठजाने के लिये यम्बक को इशारा किया और आप श्रममन्त के साथ अलग अलग कुर्सी परमगर ज़रा यम्बक से दूर हटकर-बैट गई। कल देर तक दो चार मामूली बातों के होजाने के बाद कसम ने पण्डाजी की और देखा और कहा -जहातक मैं क्याल करती मेरे ध्यान में यही बात आती है कि आज के पहिले शायद हमारी मायकी देखा-भाला नहीं हुई थी। इसलिये मैं यह जानना चाहती हूं कि इस समय आपने यहांतक आने का कष्ट किस लिए उठाया?" कुसम की इस ढंग की बातें सुनकर त्र्यम्बक ने अपना सिर भीमा कर लिया, और कुछ देर तक गौर करने के बाद यों कहा,- 'तुमने जो अभी यह कहा कि, 'माज के पहिले हमारी आपर्क देखापाली नहीं हुई थी,' यह बात ठीक नहीं है बल्कि तुम जमछ: महीने की धी, सब मेरी हिफाजत में आई थीं और जब छः या मान बरस की हुई थी, तब मेरे या अपने दुर्भाग्य के कारण-मुझसे भलग हुई थीं। अब मैं तुम्हारे उस दूसरे सवाल का यों जवाब देन कि मैं इस समय पिसलिए तुम्हार पास भ पा 'पहर-
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