पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१५३

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म्वर्गीयकुसुम । (छसोसया चुन्नी के हाथ बेच दिया । यदि ऐसा न होता तो वह मेरे हाल से ताल्लुक रखनेवाला तावीज मुझे क्यों देता? इस लिये चाहे त्र्यम्बक ने मेरे साथ बड़ी बुराई की, पर इतना मैं उसका उपकार ज़रूर मानंगी कि उस ताबीज़ को मुझे देकर उसने मेरे साथ बड़ी भलाई भी की। अगर उन्मने वह तावीज़ मुझे न दिया होता तो मैं जन्मभर अन्धकार ही में रहती और आज आपके चरणों में न पहुंच सकती। हां, यह ठीक होगा कि मुझे बेच डालने के बाद आपके पूछने पर उसने मुझे 'मरी हुई' बतलाया होगा!" ___कसम के अजीब किस्से को सुनकर और साथ ही अपने वहनोई मोतीसिंह ( भैरोसिंह ) के परिणाम को जानकर राजा कर्णसिंह वहुत ही दुखी हुए । "देवदासी-प्रथा" पर उनकी घोर घणाहोगई और अपनी धर्मान्धता तथा मूढ़ता पर उन्हें बड़ा पश्चात्ताप भी हुआ। त्र्यम्बक तथा चुन्नी के ऊपर भी उन्हें बड़ा क्रोध हुआ। ___ उन्होंने कसम से बड़े स्नेह के साथ कहा,--"बेटी कुसुम, भेरी मूढ़ता में तो कोई सन्देह नहीं, किन्तु तू धन्य है कि तूने अपना असलो हाल जानकर अपना सतीत्व-धर्म भलीभांति चाया! अव चाहे सारा हिन्दू-समाज तुझे वेश्या समझकर न ग्रहण करे, पर धर्मनः तू कदापि पतित नहीं हुई है; क्योंकि धर्म ने तेरा साथ नहीं छोड़ा है। भगवान् मनुजी ने बहुत ही सही कहा है कि,-'धर्मों हतो हन्ति नरं धर्मो रक्षति रक्षितः'~ अर्थात् जिस तरह तूने दृढ़ता के साथ धर्म की रक्षा की है, उसी तरह वह (धर्म) भी सदैव तेरी रक्षा किया करेगा; अब यदि परलोक या सतीलोक का होना सत्य है, तो वहां पर तेरा आसन बड़ी बड़ी कुल बालाओं से भी बहुत ही ऊंचा होगा । खैर, यह जो कुछ हो, पर अब मैं तुझे दृढता के साथ प्रकाश्यरीति से ग्रहण करूंगा और इसमें समाज की किसी बाधा की भी परवाह न करूंगा।" __ अपने जन्मदाता पिता के मुख से ऐसे स्नेह-भरे वाश्यों को सुनकर कुसुमक मारी की आंखों से चौधारे आसू बहने लग गये थे। उसने बड़ी कठिनाई से उमड़ते हुए मामुओं के बेग को रोका और कहा,-" पिताजी ! आपने मुझे स्नेह से ग्रहण किया. इससे पटकर मेरे लिये और कौन सी खुशी होसकती है अब मुझे इस - - wrरिणा गया कि जब कि आपने मोनसण कर लियाता