परिच्छेद) कुमुमकुमारी। १४३ को राजासाहब के हाथ में देकर यों कहा.--" पहिले आप इन्हें अच्छी तरह देखले.तब मैं अपना सारा पिछलाहाल आपको सिलसिले- चार सुनाऊंगी।" यह सुनकर और उस पुर्जे और तावीज़ को लेकर राजासाहब ने उन दोनों को अच्छी तरह देखा; इसके बाद कुसम से कहा,-- "तू ज़रा अपनी बाई-ओर-बाली बगल तो मुझे दिखला?" यह सतकर कसम ने तुरन्त अगनी बग़ल राज्ञासाहन को दिखलाई, जिसमें " का चिन्ह बना हुआ था! यह अजाब कैफियत देखकर राजासाहब ऐसे परेशान हुए कि देर तक उनके कालेजे की धड़कन दूर न हुई और बड़ी बड़ी मुश्किलों से उन्होंने कुछ देर में अपने जी को किसी किसी तरह ठिकाने करके कहा,-"बेटी कुसुम, जब इसमे कुछ भी सन्देह न रहा, और यह बात सप्रमाण सिद्ध होगई कि मेरी वह प्राण-समान पुत्री चन्द्रप्रभा तू ही है। हा. त्र्यम्बक कैम्मा झुठा और फरेलिया निकला अब अगर वह कभी मेरी ड्योढ़ी पर चढ़ेगा तो मैं उससे समझ लंगा । खैर बाब यह बता कि तू इतने दिनों तक कहां रही, कोकर अपने असली हाल को तूने जाना और किस तरह चुन्नी ने तुझे अपने चकावू में फंसाया?" यह सुनकर कुसमकमारी ने अपना सारा पिछला हाल कह सुनाया, जो कि इस उपन्यास के पिछले परिच्छेदों में अबतक लिखा जा चुका है। इतना कह चुकने के बाद कुसुम ने कहा, "मुझसे त्र्यम्मक ने यो कहा था कि, 'बेटी : तृ एक राजा की लड़की है इसलिये तू मेरे यहां आराम न पावेगी, इस वास्ते मैं तुझे एक रानी को मौंग देना हूं:' यों कहकर उसने मुझे यह ताबीज़ और पुर्जा दिया । इमसे यह बात साबित होती है कि यदि चुन्नी ने अपने को गनी कहकर उसे धोखा न दिया होता और वह उस (चुनी) के नकमे में न आमया होता तो फिर वह मुझे इस यन्त्र और पुर्जे को क्यों देना और बारह बरस के बाद इसके हाल जानने के लिये इतना नाकार ही क्यों करता ! इससे मुझे तो यही बात जान पड़ता है कि अम्बक को चुभी ने धोखा दिया और उस (श्यम्बध ने उस (चुनी) के मासे पट्टी में माफर कल योद्धे से रुपयों क लालन में मु
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