परिच्छेद ) कसुमकुमारी १४१ ने "चन्द्रमा रक्खा था और जिस समय वह जगदीश को चढाई नहई थी, केवल छः महीने की थी। उसकी बाई बगल में एक चक्र का चिन्ह भी था।" कुसुम.--"इसके बाद फिर कभी आपने यह बात दरयाफ्त को थी कि, 'आपकी चन्द्रप्रभा कैसी हालत में है?" कर्ण सिह,-"फिर मुझे उस कन्या के हाल जानने की क्या ज़रूरत थी. जबकि वह देवताको चढ़ा दी गई थी .फिर भी, एक बार जब मैने यम्बक से उस कन्या के बारे में पूछा था तो उसने यह कहा था कि, वह मरगई!' बस फिर कभा मैने उसका खयाल न किया।" कुसुम ने कुछ रूखेपन के साथ कहा,--"टीक है, आप ही ऐसे लोगों ने इस घणित "देवदासी प्रथा" को प्रश्रय दिया है, जिसके कारण देश में घोर अत्याचार, अनाचार, पापाचार, व्यभिचार और दुराचार की इतनी मात्रा बढ़ गई है कि जिसका कोई ओर-छार ह नहीं है ! आपका हृदय धन्य है कि जिसने फिर कभी अपनी आत्मजापुत्री की और भूलकर भी ध्यान न दिया यदि आपको आज यह मालूम होजाय कि, 'दुरात्मा त्र्यम्बक ने आपसे जो कुछ कहा है,वह सरासर झूठ है, और आपकी वह अभागिनी कन्या चन्द्रप्रभा अनी जीती-जागती है, तो क्या आप उसकी ओर अखि उठाकर देखेंगे, या उसे अपने चरणों में स्थान देंगे?" यहसुन और आश्चर्यचकित होकर कर्णसिंह ने कहा.-"तूने क्या कहा, कुसम ! क्या मेरी चन्द्रप्रभा अभीतक जीती-जागती है ?" कुसुम.-"हां वह भाग्यहीना अभीतक नहीं मरी है !" कर्णसिंह,--"तो वह मेरी प्राण-समान प्यारी पुत्री चन्द्रप्रभा क सम...-"वह इस समय जहां है. इसे याआप जानना चाहते कणसिंह,-'हां, हां नू जल्द बता कि वह कहां है?" क सुम,-"तो उस अभागिन लड़की का पता मैं अब आपको बनलाती हूं. ----...-.--." कर्ण सिह,--( जल्दी से ) "हां, जल्द बना कि वह मेरी पर चन्द्रप्रभा इस समय कहां हे?" कसम ने कहा, 'एक वेश्या के घर । .
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