पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१४४

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परिन्छम् ) कुसुमकुमारी। १३५ बात कहा चाहती हूं कि जिम सुनकर आश्चर्य नहीं कि आपके दुश्मनों की जानों पर आ नाने; इस लिये आपसे प्रार्थना है कि क्या थोडी देर के लिये आप अपने कलेजे को बज्र सं मी कठोर बना लेंगे?" कुसुमकुमारी की आश्चर्य मे भरी हुई ये बातें सुनकर राजा कर्णसिंह बहुत ही चकित हुए और थोड़ी देरतक ये नजाने क्या क्या मन ही मन मोचते रहे: इसके बाद उन्होंने कुछ घबराहट के साय कहा.---आरिवर तुम मुझसे क्या कहना चाहती हो?" कुसुम ने कहा, ---"पहले तो आप यह बतलाइये कि आपका आना जाना कमी आरे के ग्राबू कंवर मह के दार में भी हुआ करता है ? ” कर्ण मह ने कहा. --"हां, अकमर मैं आरे के बावपाहय के बान में जाया करता है. स्मोकि एक ना वे में करीबी रिश्तेदार, यानी फा -और दूसरे इस वक्त बिहार में उनके मन का मा दुसरा सरदार नहीं है। लेकिन इन सवाल में तुम्हारी क्या मुगाद है ?" कुसुम कहने लगी,-"इस सवाल से मेरी जो कुछ गुजारिश है, वह आपको अभी थोड़ी ही देर के बाद खुद-बखद मालूग होजायगी इमलिये अन्य आप यह यकलाइये कि आपने बाबू कंवरसिंह के दरबार में आरे की मनाहर और मालदार रंडी चुन्नी को भी कभी देखा था?" राजा कणा सिंह.--"हां हां: चुन्नी को मैंने अकमर बाबूमाहब के दरबार में देना था वह बड़ा नेक रडा थी और गाने-बजाने का बहुत अच्छा इल्म रखती थी। मेरे कुंवर अनूपसिह की शादी में वह यहां भो नाचने आई थी! यह सुनकर मुझे बहुत ही अफमोन हुआ था, जर कि मेने, कुछ दिन हुए यह सुना था कि वह हरिहर-क्षेत्र मे गण्डकी नदी में नाव के उलट जान से डूब मरी लेकिन इस वक्त तुम चुत्री का जिन क्यो करने लगी ?" कुसुमन कहा,-'जो, सुनिये, अर्ज करती हूं,--आपके चिरजीव राजकुमार कुंवर अनूपनिह जी का शादी में चुन्नी के साथ उसकी एक लड़की भी आई थी, यह आपको याद है?" यह सुनकर गजा कर्णमिह घोड़ी देर तक कुछ सोचते रहे, हम के बाद बोले &ा मुझे प्रेमा याद आता है कि चुन्नी के साथ उसका लडकी भा शायद आई था और यह भी याद माता