पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१३१

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स्वगायकुसुम ( पत्तोसा यह हाल मुझसे या किसी और से न कहें ? " बसन्त,-'नहीं, ताकीद तो मैने नहीं की थी।" कुसुम,--"तो तुम यह हाल मुझसे छिपाया चाहने थे?" बसन्त,-"नहीं, कभी नही; फकत मौका न मिलने के कारण ही आज तक मैं अपना हाल नहीं कह सका था, मगर प्यारी ! तुम धन्य हो कि मेरी हालत जानकारी मुझ पर प्रेम करती हो!" कुसुम,--"सुनो, प्यारे ! मैंने तुमसे प्रेम किया है, तुम्हारी हालत या दौलन से प्रेम नहीं किया। खैर, ना परसों तिलक, अतरमों कंच, आज के नवे दिन विवाह और - ---" बसन्त,-(उरो रोककर)"एँ! यहां तक! पर यह सब हुआ क्योंकर ? " कुसुम,-"तुम जानते हो कि तुम्हारे आराम होने पर भैरोसिंह महीने भर तक गायन थे?" बसन्त,--"वे नकमर गए थेन !" कुसुम,-"जी नहीं, ये मेरे कहने से तुम्हारी शादी पक्री करने गए थे, पर जब लड़कीवाले ने तुम्हारी हैसियत पूछी, लव भैरोसिंह ने चालाकी करके मेनी सारी मिलकियत को तुम्हारी बतादादिया और यो लड़की वाले को चकमा देकर शादी पही करली । यही आने पर जब उन्होंने मुझने यह हाल दहा तो चट मैंने अपनी कुल स्थावर और अस्थावर सम्पत्ति तुम्हारे नाम लिन कर रजिष्टरी करा दी और सब गांव इलाको पर तुम्हागनाम चढ़ा दिया गया।" बसन्स,- ताज्जुब से आकाश-पाताल देग्नता हुआ ) "ऐ ! यहां तक तुम कर गुज़री और मुझे रत्ती भर भी खबर न लगने पाई! रात-दिन का साथ होने पर भी मैंने इस कार्रवाई का हाल कुछ भी न जाना!!" कुमुम,--(मुस्कुराकर)"रंडियो की कारवाई का हाल जानना क्या हसी खेल है ! » बसन्त,-"प्यारी! तुम्हारी यह बात मेरे कलेजे में तीर सी लगती है, इसलिये बार बार तुम ऐसी बात मुहं से न निकाला करो।" कुसुम -- (मुस्कुगकर ) "जी । मैं कुछ आप की मोल-खरीदी दुई लौडी नहीं कि जा हुज़र फरमाएगे उस में मिला उन्न मान