कुसुमकुमारी चाले तुम्हारे स्वर्गीय पूज्य पिता बाबू सजनकुमारसिंहजी तुम्हें छ महीने का छाड़कर परलाक सिधारे, तब तुम्हारी पूज्य माता शारदादेवी तुम्हें साथ ले आरे में अपने मैके में चली आई । तुम्हारे पिता एक साधारण आदमी धे और लोगों का कागज-पत्र लिन कर अपना गुजारा करते थे। तुम्हारे नानिहाल में भी तुम्हारी नानी के अलावे और कोई न था, लेकिन उनकी दशा बहुतही खराब थी। धन्य तुम्हारी श्रीमाताजी थी कि उन्होंने अपने हाथ की कारीगरी से तुम्हें बारह-तेरह वर्ष तक पाला-पोसा और पढ़ाया-लिखाया। मां के मरने के शोक में तुम्हारी नानी भी तुम्न ही मर गई और तब तुम इस संसार में अकेले और अनाथ होगए। तुम्हारी माताजी ने तुम्हें ऐसे ढंग से शिक्षा दी थी कि किसी सरपरस्त के न रहने पर भी तुमने खोटी संगत अग्न्त्यार न की, और पढ़ने लिखने से अपना जी न हटाया। तुम्हारी नानी के मरने पर जब उनके गोत्रियों ने उनके घर को दखल करके तुम्हें निकाल बाहर किया, तब तुम्हारे दिल पर यमालीनी होगी, यह तो तुम्ही जानो : तुम्हारे गुरु शंकरलाल ने, जोकि तुम्हे अंगरेजी और फ़ारसी पढ़ाते थे, तुम को अपने बेटे की भांति अपने घर रख कर हर तरह से पढ़ाया-लिखाया और तुम्हारी पर्वरिश की । उनको कोई न था, इमलिये मरने के समय अपनामकाल और जो कुछ थोड़ा-बहुत माल-मता था, वह सब वे तुम्हें दे गए।' बस यही तुम्हारी जीवनी है, या और कुछ ?” असन्तकुमार सन्नाटे में आकर अपनी जीवनी कुसुम के मुहं से सुनता और रह रह कर मारे तालुम के चिहुंक उठता था। कुसुम के चुप होने पर उसने कहा,--"प्यारी ! मैं हैरान हूं कि ग्रह सम हाल तुमने क्योंकर जाना ! कुसुम,-(मुस्कुराकर) "मुझे ऐसा मन्त्र आता है. कि उसके बल से मैं जो चाहूं, सो जान सकती हूं।" बसन्त,-"अब चोचले रहने दो! तुम्हें मेरी कसम, सच कहो, यह बात तुम्हें क्योंकर मालूम हुई ?” कुसुम,-"तुमने यह हाल कभी भैरोसिंह से कहा था ? " बसन्त,-"हां, जरूर कहा था, पर मैं नहीं जानता था कि के तुमसे कह देंगे। कुसुम, 'क्या तुमने उनसे इस बात की ताकीद की था कि वे
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