पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१२८

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परिच्छद) कुसुमकुमारी १२६ सब बुराइयों के कारण वेही महात्मा हैं, जो अपने को समाज के अगुआ समझने हैं या जिन पर समाज की भलाई-बुराई निर्भर है। इम समय मैं इस बात पर ज़ियादह दलील नहीं किया चाहती, नहीं तो इस बात को साबित कर देनी कि हिन्दूममाज में आज दिन जितनी बुराइयां आ घुमी हैं, उनमें से पौने-सोलह-आने बुराइयों के कारण केवल पुरुष ही हैं, न कि वेचारी अवलाएं।" बसन्त --(चकित होकर )" ऐं ! यह तो तुमने बहुत दूर की बात कही!" कुसुन,-"खैर, इन झगड़ो को यही छोड़ो । सुनो, मेरी एक विनती है, उसे तुम कबूल करो।" बसन्त,-'कहो ?" कुसुम,-"यो नहीं, तुम इस बात की कमम वाओ कि जो मैं कहूंगी, सो करोगे । । बसन्त,--मई वाह वाह ! तुम भी प्यारी, बिचित्र हो । मला. यह तो बतलाओ कि तुम्हारी कौन सी बात मैंने नहीं मानी है ?" कुसुम.--"ठीक है, पर यह बात ही ऐसी है कि जब तक तुम कसम न खा लो, मुझे इस बात का यकीन ही नहीं हो सकता कि जो मैं कहूंगी तुम उसे मंजूर करोगे।" बसन्त,-"अच्छा, कसम खाया, अब कहो?" कुसुम.---"नो बम मैं भी कह चुकी; चलो छुट्टी हुई ! " बसन्त,---"तुम बड़ी बेढब हो ! खैर बतलाओ, कौनसी कसम खाऊ।" कुसम.-"संसार में जिसे तुम सबसे बढ़कर प्यार करते होची, उमीके सिर पर हाथ रख कर कसम खाआ।" जमन्त.---"मेरे प्यार की पुतली तो तुम्ही हो। कसम,'तो बस. मेरी ही सही।" बसन्त,-"मगर, यह तो मुझसे न होगा क्यों कि न मालूम, तुम मुझे क्या करने के लिये कहो!" कसम,-"जो मैं कहूंगी, उसे तुम्हें करना पड़ेगा।" बसन्त..-.और जो मैं न कर सका?" कसम “तुम मुसमारोगे और जो मैं कहूंगी उसे करोगे " बमन्त यह तो बड़ी जबदस्ती ठहरी " ७ .