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परिच्छेद.]
कुसुमकुमारी.

फिर तो खूब ही हल्ला मचा: पर जितना लोगों ने हल्ला मचाया, उसका चौथाई भी अपना कुछ कर्तबन दिखलाया और न कोई उन डूबते हुओं के बचाने के लिए ही आगे बढ़ा । बात की बात में यह खबर पुलिस के कानों तक पहुंची और चट उसने अपनी नाव उस उलटी हुई डोंगी की ओर तेजी के साथ बढ़ाई। तब तो और भी कई डोंगियां मल्लाहों ने भी खोली।

वह 'डोंगी, जो कि उलट गई थी और जल के ऊपर, बहाव की ओर, बही जारही थी, खीच-खांच-कर किनारे लाई गई; किन्तु उस पर जितने अभागे सवार थे, उन सभों का कुछ भी पता न लगा।यद्यपि पुलिस ने अपने भरसक पूरी कोशिश की और कई गोतेखोर मल्लाह भी कूदे, पर भयानक तखेवाली गंडकी के संगम-वाले जल में डूबे हुओं का पता लगाना असंभव होगया। यहांपर इतना और भी समझलेना चाहिए कि उस डोगी पर के सब मल्लाह तैर कर निकल आए थे, जो कि उलट गई थी। किन्तु हा, उस व्यक्ति का भी कुछ पता न था, जो कि किश्तीपर से डोंगीवालो के प्राण बचाने के लिए कूदा था !

जिस बड़ी किश्ती से टकराकर वह डोगी डूबी थी, उस किश्ती पर एक उदासीन बाबाजी बैठे हुए नीचे लिखा हुआ 'ध्रुपद " गारहे थे,-

" देखि जग-चरित अचेत चित होत यार,

घर औ दुआर तजि अनतहिं जाइए।

आज-काल करत निकट नियरात काल,

जनम-मरन सोच समुझि भुलाइए।।

कहीं खुसी होय कहीं होय हाय-हाय अहो,

सब तजि हरि भजि गरब गँवाइए।

छोङिए सकल भूमजाल या कराल काल,

राधिका-गुपाल के चरन मन लाइए ॥"