पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/११९

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५१० स्वगायकुशुम । (सपा तीसवां परिच्छेद hd A . भैरोसिंह की जीवनी का अन्त "संसार तच निस्सार-पदवी न दवीयसी । अन्तरा दुस्तरा न स्युर्यदि रे मदिरेक्षणाः ॥ (सुभाषिते.)

    • सरे दिन दो पहर के बाद. जन्म कुसुमकुमारी भोजन आदि
  • द से निश्चिन्त होकर अपने कमरे में बैठी और बसंतकुमार

FIR भी आगया तब भैरोसिंह बुलाए गए। उनके आने पर थोड़ी देर तक तो सब कोई चुप रहे, फिर कुसुम- कुमारी ने कहा,-"बाबा! आपने दिल के टुकड़े उड़ानेवाली अपनी जैसी जीवनी सुनाकर हमलोगों के कलेजे को मसल डाला है, यदि आपध्यान देकर सुनेंगे तो मेरो भी जोवनीवैसीहो कालेजेकी धज्जियां उड़ानेवाली प्रतीत होगी। इस पर भैरोसिंह ने सुनने का आग्रह किया, तब कुसुम ने अपनी जीवनी का पहिला हिस्सा, जो कि उसने बसन्तकुमार से कहा था, कह सुनाया। (१) कुसुम की अद्भुत जीवनी के सुनते-सुनते बीचबीच में भैरोसिंह ने बड़ी बेचैनी के साथ कई बेर लंबी-लवी सांसे ली और चिहुंक चिक्षुक कर अपने कलेजे पर पड़ती हुई चोट को बड़ी ही घबरा हट के साथ सहा और जब कुसुम की जीवनी कावह हिस्सा, जहां तक कि पहिले लिखा गया है. पूरा हुआ, तप भैरोसिंह ने उससे वह परचा और यंत्र भी लेकर देखा । देखते ही एक गहरी चीख मार कर वे बेसुध होकर वहीं गिर गए। उनकी यह दशा देख कुसुम ने घबरा कर और उन पर गुलाब जल छिड़क कर पंखा झलना प्रारभ किया। थोड़ी देर में भैरोसिंह ने होश में आकर आंखें खोलों और फिर बड़ी बड़ी कठिनाई से अपने जी को ठिकाने कर के उन्होने कहा,- (१) देखो परिच्छेद छठां और सातवां ।