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परिच्छेद ४९
अवसर की परख

उल्लू पर पाता विजय, जैसे दिन को काक।
वैसे अरि पर भूप भी, विजयी अवसर ताक॥१॥
करलेना निजसाधना, देख समय को खास।
मानो देना प्रेममय, भाग्यश्री को पास॥२॥
साधन अवसर प्राप्त कर, करले जो व्यवहार्य।
कार्यकुशल उस आर्य को, कौन असम्भव कार्य॥३॥
साधन अवसर की अहो, रखते परख विशेष।
जीतोगे निजशक्ति से, यह ही विश्व अशेष॥४॥
जय-इच्छुक हैं देखते, अवसर को चुपचाप।
विचलित हो करते नहीं, सहसा कार्यकलाप॥५॥
हटकर मेदा युद्ध में, करता जैसे चूर॥
कर्मठ भी वैसा दिखे, अकर्मण्य कुछ दूर॥६॥
क्रोध प्रगट करते नहीं, तत्क्षण ही धीमान।
अवसर उसका ताकते, करके मनमें पान॥७॥
तब तक पूजो शत्रु को, जब तक उसका काल।
जब हो अवनतिचक्र में, भू में मारो भाल॥८॥
शुभ अवसर जब प्राप्त हो, करलो तब ही आर्य।
निस्संशय हो शीघ्र ही, जो भी दुष्कर कार्य॥९॥
अक्रिय बनता प्राज्ञनर, देख समय विपरीत।
बकसम वह ही टूटता, जब देखे निजजीत॥१०॥