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अहिंसा और पाप का नामकरण 'पोरम' अर्थात् हिंसा से करती थी। नलदियार संस्कृत भाषा में न होकर जनता की भाषा में है, इसलिए कुछ लोग इसको 'बेल्लार वेदम्' भी कहते है। जिसका अर्थ है किसानो का वेद।

वर्तमान साहित्य का जब जन्म ही नहीं हुआ था तब जैनों ने कई सहस्र वर्ष पहिले समीचीन अर्थात् सही ज्ञान देने वाले सार्वजनिक साहित्य को संसार के सामने उपस्थित किया था और यह साहित्य तामिल भाषा में है, जिसका हम यहाँ दिग्दर्शन कराते है।

तामिल भाषा में अन्य महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थ

१. टोलकाप्पियम्—यह तामिल भाषा का अति प्राचीन विस्तृत और व्यवस्थित व्याकरण है। भारतके प्रसिद्ध आठ वैयाकरणों में जिसका प्रथम नाम आता है उस इन्द्र के व्याकरण के आधार पर यह तामिल भाषा का व्याकरण लिखा गया है। खेद है कि यह इन्द्र का व्याकरण अब संसार से लुप्त हो गया है। टोलकाप्पियम् के उदाहरणों से तामिल देश की सभ्यता और समृद्धि का बोध होता है। 'प्रतिमायोग' जीवो के इन्द्रीविभाग आदि, जैन-विज्ञान के उदाहरण देने से ज्ञात होता है कि इसका रचयिता जैन विज्ञान से पूर्णपरिचित था।

२. शिलप्पदि करम—इस महा काव्य की चर्चा हम ऊपर कर आये है।

३. जीवक चिन्तामणि—तामिल भाषा के पांच महाकाव्यों में इसे अत्यन्त महत्वपूर्ण गौरव प्राप्त है। इसकी इतनी अधिक सुन्दर रचना है कि इसके एक प्रेमी ने यहां तक लिखा था कि यदि कोई चढ़ाई करके तामिल देश की सारी समृद्धि ले जाना चाहे तो भले ही ले जाए, पर 'जीवक चिन्तामणि' को छोड़ दे।

४. अरनेरिच्चारम्—'सधर्ममार्गसार' के रचयिता तिरुमुनैप्पादियार नामक जैन विद्वान् है। यह अन्तिम संगमकाल में हुए थे। इस महान् ग्रन्थ में जैनधर्म से सम्बन्धित पाँच सदाचारों का वर्णन है।