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इस पुस्तक की पहली आवृत्ति में छापे की अनेक भूलें रह गई थीं। छपाई भी अच्छी नहीं हुई थी। इससे इसकी यह दूसरी आवृत्ति, परिष्कृत रूप में, इंडियन प्रेस द्वारा प्रकाशित की जाती है। आशा है, पाठक इस आवृत्ति को पहली की अपेक्षा अधिक पसन्द करेंगे।
जुही, कानपुर | महावीरप्रसाद द्विवेदी |
२७ दिसम्बर, १९०७ |