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तुच्छ वस्तु की अभिलाषा में तुझको रत में पाता हूँ;
तेरी रुचि-विचित्रता को में सोच सोच पछताता हूँ।
क्योंकर, पहले ही, तेरा कर कड़्कण से शोभित होकर,
सहन कर सकेगा सर्पो से लिपटा हुआ शम्भु का कर
६७
कहाँ बधू का वस्त्र मनोहर अति विचित्र पीला पीला?
कहाँ रुधिर टपके है जिससे वह गजराज-चर्म्म गीला?
तूही समझ देख निज मन में कि यह बात क्या कहता है;
इन दोनों का साथ सुन्दरी! कभी उचित हो सकता है
६८
अम्बुज बिछे हुए आँगन में जो पद सदा पधारे हैं;
वहीं जिन्होंने मञ्जु महावर से स्वचिह्न विस्तारे हैं।
बिखरे केश मसान-भूमि में वेही आवें जावेगे;
मैं क्या, इसे शत्रु भी तेरे कभी न युक्त बतावेंगे!
६९
भूतनाथ का यदि आलिङ्गन तुझे मिला भी सुकुमारी!
तू ही बता और क्या होगा इससे अधिक हानिकारी?
हरिचन्दन के योग्य कुत्रों को तू अति मलिन बनावेगी;
क्योंकि, चिता का भस्म निरन्तर उनमें लग लग जायेगी
७०
हे गिरिजे ! उत्तम गजेन्द्र के ऊपर होने योग्य सवार!
शुभ विवाह के पीछ तुझको वृद्ध बैल पर चढ़ा निहार
सोहेगा प्रशस्त पुरुषों के मुख में मन्द मन्द मुसक्यान;
देख आदिही में यह होगी तब विडम्बना महा महान॥
७१
उस भुजङ्ग भूषण से सङ्गति होने का कर विनय-विधान,
शोचनीय गति का पहुँची हैं ये दोनोंही, सांचो जान।