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१
कामदेव पर बड़े चाव से आकर पड़े एक ही बार।
अपने सब सेवक-समूह पर स्वामी का आदर-सत्कार,
२
अासन रुचिर दिया सुरपति ने अपने ही सिंहासन पास।
स्वामी की इस अनुकम्पा का अभिनन्दन कर शीश झुकाय,
३
विश्व-बीच कर्तव्य कर्म तब क्या है, मुझे होय आदेश।
करके मेरा स्मरण,अनुग्रह दिखलाया है जो यह आज
४
की उत्पन्न असूया तुझ में-मुझसे कहो कथा सारी।
मेरा यह अनिवार्य शरासन पाँच-कुसुमसायक-धारी,
५
तव सम्मति-प्रतिकूल गया है मुक्तिमार्ग में अभिमानी?
- इस सर्ग की कथा बहुत ही मनाहर है;इसलिए, इसका पूरा
अनुवाद किया गया है।