पृष्ठ:कुछ विचार - भाग १.djvu/७६

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:: कुछ विचार ::
 

कुछ शक्ति और प्रभाव है वह जनता ही से आता है। उससे अलग रहकर वे हाकिम की सूरत में ही रह सकते हैं, ख़ादिम की सूरत में, जनता के होकर नहीं रह सकते। उनके अरमान और मंसूबे उनके है, जनता के नहीं। उनकी आवाज़ उनकी है, उसमें जनसमूह की आवाज़ की गहराई और गरिमा और गम्भीरता नहीं है। वह अपने प्रतिनिधि हैं, जनता के प्रतिनिधि नहीं।

बेशक, यह बड़ा जोरदार जवाब है कि जनता में शिक्षा इतनी कम है, समझने की ताक़त इतनी कम कि अगर हम उसे ज़ेहन में रखकर कुछ बोलना या लिखना चाहें, तो हमें लिखना और बोलना बन्द करना पड़ेगा। यह जनता का काम है कि वह साहित्य पढ़ने और गहन विषयों के समझने की ताक़त अपने में लाये। लेखक का काम तो अच्छी-से-अच्छी भाषा में ऊँचे-से-ऊँचे विचारों का प्रकट करना है। अगर जनता का शब्दकोष सौ-दो-सौ निहायत मामूली रोज़मर्रा के काम के शब्दों के सिवा और कुछ नहीं है, तो लेखक कितनी ही सरल भाषा लिखे जनता के लिए वह कठिन ही होगी। इस विषय में हम इतनी अर्ज़ करेंगे कि जनता को इस मानसिक दशा में छोड़ने की ज़िम्मेदारी भी हमारे ही ऊपर है। हममें जिनके पास इल्म है, और फुरसत है, यह उनका फ़र्ज़ था कि अपनी तक़रीरों से जनता में जागृति पैदा करते, जनता में ज्ञान के प्रचार के लिए पुस्तकें लिखते और सफ़री कुतुबख़ाने क़ायम करते। हममें जिन्हें मक़दरत है वह मदरसे खोलने के लिए लाखों रुपए ख़ैरात करते हैं। मैं यह नहीं चाहता कि क़ौम को ऐसे मुहसिनों को धन्यवाद न देना चाहिये, मगर क्या ऐसी संस्थाएँ न खुल सकती थीं और क्या उनसे क़ौम का कुछ कम उपकार होता जो भाषणों और पुस्तकों से जनता में साहित्य और विज्ञान का प्रचार करतीं और उनको सभ्यता की ऊँची सतह पर लातीं? आर्यसमाज ने जिस तरह के विषयों का जनता में प्रचार किया है उन विषयों को साधारण पढ़ा-लिखा आर्यसमाजी भी ख़ूब समझता है। अदालती मामलों को, या मुक्ति और आवागमन जैसे गम्भीर विषयों को गाँव