पृष्ठ:कुछ विचार - भाग १.djvu/५९

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हैं। आपने ऐसी कहानियाँ लिखने का जो नियम बताया है वह बहुत शिक्षाप्रद है। हम उसका आशय लिखते हैं—

'कहानी में जो रहस्य हो उसे कई भागों में बाँटना चाहिये। पहले छोटी-सी बात खुले, फिर उससे कुछ बड़ी और अंत में रहस्य खुल जाय। लेकिन हरएक भाग में कुछ न कुछ रहस्योंद्धाटन अवश्य होना चाहिये जिसमें पाठक की इच्छा सब-कुछ जानने के लिए बलवती होती चली जाय। इस प्रकार की कहानियों में इस बात का ध्यान रखना परमावश्यक है कि कहानी के अंत में रहस्य खोलने के लिए कोई नया चरित्र न लाया जाय। जासूसी कहानियों में यही सबसे बड़ा दोष है। रहस्य के खुलने में तभी मज़ा है जब कि वही चरित्र अपराधी सिद्ध हो जिस पर कोई भूलकर भी सन्देह न कर सकता था।'

उपन्यास-कला में यह बात भी बड़े महत्त्व की है कि लेखक क्या लिखे और क्या छोड़ दे। पाठक कल्पनाशील होता है। इसलिए वह ऐसी बातें पढ़ना पसन्द नहीं करता जिनकी वह आसानी से कल्पना कर सकता है। वह यह नहीं चाहता कि लेखक सब-कुछ ख़ुद कह डाले और पाठक की कल्पना के लिए कुछ भी बाक़ी न छोड़े। वह कहानी का ख़ाका-मात्र चाहता है, रंग वह अपनी अभिरुचि के अनुसार भर लेता है। कुशल लेखक वही है जो यह अनुमान कर ले कि कौन-सी बात पाठक स्वयं सोच लेगा और कौन-सी बात उसे लिखकर स्पष्ट कर देनी चाहिये। कहानी या उपन्यास में पाठक की कल्पना के लिए जितनी ही अधिक सामग्री हो उतनी ही वह कहानी रोचक होगी। यदि लेखक आवश्यकता से कम बतलाता है तो कहानी आशयहीन हो जाती है, ज़्यादा बतलाता है तो कहानी में मज़ा नहीं आता। किसी चरित्र की रूपरेखा या किसी दृश्य को चित्रित करते समय हुलिया-नवीसी करने की ज़रूरत नहीं। दो-चार वाक्यों में मुख्य-मुख्य बातें कह देनी चाहियें। किसी दृश्य को तुरत देखकर उसका वर्णन करने से बहुत-सी अनावश्यक बातों के आ जाने की सम्भावना रहती है। कुछ दिनों के बाद अनावश्यक बातें आप ही आप मस्तिष्क