का बायकाट करती है, उस पर दूर ही मे लाठी लेकर उठती है, वह राष्ट्रीय संस्था किस लिहाज़ से है और जो लोग जनता की भाषा नहीं बोल सकते, वह जनता के वकील कैसे बन सकते हैं, चाहे वे समाजवाद वा समष्टिवाद या किसी और वाद का लेवल लगाकर आवें। संभव है, इस वक्त आपको राष्ट्र-भाषा की ज़रूरत न मालूम होती हो और अँग्रेज़ी से आपका काम मज़े से चल सकता हो, लेकिन अगर आगे चलकर हमें फिर हिन्दुस्तान को घरेलू लड़ाइयों से बचाना है, तो हमें उन सारे नातों का मज़बूत बनाना पड़ेगा, जो राष्ट्र के अंग हैं और जिनमें क़ौमी भाषा का स्थान सबसे ऊँचा नहीं, तो किसी से कम भी नहीं है। जब तक आप अंग्रेज़ी को अपनी क़ौमी भाषा बनाये हुए है, तब तक आपकी आज़ादी की धुन पर किसी को विश्वास नहीं आता। वह भीतर की आत्मा से निकली हुई तहरीक नहीं है, केवल आज़ादी के शहीद बन जाने की हबिस है। यहाँ जय-जय के नारे और फूलों की वर्षा न हो; लेकिन जो लोग हिन्दुस्तान को एक क़ौम देखना चाहते हैं—इसलिए नहीं कि वह कौम कमज़ोर क़ौमों को दबाकर, भाँति-भाँति के माया-जाल फैलाकर, रोशनी और ज्ञान फैलाने का ढोंग रचकर, अपने अमीरों का व्यापार बढ़ाये और अपनी ताक़त पर घमण्ड करे, बल्कि इसलिए कि वह आपस में हमदर्दी, एकता और सद्भाव पैदा करे और हमें इस योग्य बनाये कि हम अपने भाग्य का फैसला अपनी इच्छानुसार कर सकें—उनका यह फर्ज़ है कि क़ौमी भाषा के विकास और प्रचार में वे हर तरह मदद करें। और यहाँ सब कुछ हमारे हाथ में है। विद्यालयों में हम क़ौमी भाषा के दर्जे खोल सकते हैं। हर एक ग्रेजुएट के लिए क़ौमी भाषा में बोलना और लिखना लाज़िमी बना सकते हैं। हम हरेक पत्र में, चाहे वह मराठी हो या गुजराती या अंग्रेज़ी या बँगला, एक दो कॉलम क़ौमी भाषा के लिए अलग करा सकते हैं। अपने प्लेटफार्म पर कौमी भाषा का व्यवहार कर सकते हैं। आपस में क़ौमी भाषा में बात चीत कर सकते हैं। जब तक मुल्की दिमाग़ अँग्रेज़ों की गुलामी में ख़ुश होता रहेगा, उस वक्त तक भारत सच्चे मानो में राष्ट्रीयता का
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