पृष्ठ:कुछ विचार - भाग १.djvu/१२५

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के हँसानेवाले नाटकों की सैर कीजिये। उर्दू में हास्य रस के कई ऊँचे दरजे के लेखक हैं और पंडित रतननाथ दर तो इस रङ्ग में कमाल कर गये हैं। उमर ख़ैयाम का मज़ा हिन्दी में लेना चाहें तो 'बच्चन' कवि की मधुशाला में जा बैठिये। उसकी महक से ही आपको सरूर आ जायगा। गल्प-साहित्य में 'प्रसाद', 'कौशिक', 'जैनेन्द्र', 'भारतीय', 'अज्ञेय', वीरेश्वर आदि की रचनाओं में आप वास्तविक जीवन की झलक देख सकते हैं। उर्दू के उपन्यासकारों में शरर, मिर्ज़ा रुसवा, सज्ज़ाद हुसेन, नज़ीर अहमद आदि प्रसिद्ध हैं, और उर्दू में राष्ट्रभाषा के सबसे अच्छे लेखक ख्वाजा हसन निज़ामी हैं, जिनकी क़लम में दिल को हिला देने की ताक़त है। हिन्दी के उपन्यास-क्षेत्र में अभी अच्छी चीज़ें कम आई हैं, मगर लक्षण कह रहे हैं कि नई पौध इस क्षेत्र में नये उत्साह, नये दृष्टिकोण, नये सन्देश के साथ आ रही है। एक युग की इस तरक़्की पर हमें लज्जित होने का कारण नहीं है।

मित्रों, मैं आपका बहुत-सा समय ले चुका; लेकिन एक झगड़े की बात बाकी है, जिसे उठाते हुए मुझे डर लग रहा है। इतनी देर तक उसे टालता रहा; पर अब उसका भी कुछ समाधान करना लाज़िम है। वह राष्ट्रलिपि का विषय है। बोलने की भाषा तो किसी तरह एक हो सकती है। लेकिन लिपि कैसे एक हो? हिन्दी और उर्दू लिपियों में तो पूरब-पच्छिम का अन्तर है। मुसलमानों को अपनी फ़ारसी लिपि उतनी ही प्यारी है, जितनी हिन्दुओं को अपनी नागरी लिपि। वह मुसलमान भी जो तमिल, बँगला या गुजराती लिखते-पढ़ते हैं, उर्दू को धार्मिक श्रद्धा को दृष्टि से देखते हैं; क्योंकि अरबी और फ़ारसी लिपि में वही अन्तर है, जो नागरी और बँगला में है, बल्कि उससे भी कम। इस फ़ारसी लिपि में उनका प्राचीन गौरव, उनकी संस्कृति, उनका ऐतिहासिक महत्त्व सब कुछ भरा हुआ है। उसमें कुछ कचाइयाँ हैं, तो ख़ूबियाँ भी हैं, जिनके बल पर वह अपनी हस्ती क़ायम रख सकी है। वह एक प्रकार का शार्टहैंड है, हमें अपनी राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रलिपि का प्रचार मित्र-भाव से करना है, इसका पहला क़दम यह है कि हम