आती थीं होने लगी मदनवान रानी केतकी से ठठोली करके बोली अब सुख समेटिये भर भर झोली सिर निहुड़ाये क्या बैठी हो आओ न टुक हम तुम मिलके झरोखों से उन्हें झांके रानी केतकी ने कहा ऐसी निलज बातें हम से न कर हमें ऐसी क्या पड़ी जो इस घड़ी ऐसी कड़ी कर रेल पेल इस उबटन और तेल फुलेल भरी हुई उनके झांकनको जा खड़ी हों मदनबान इस रुखाई को उड़ानधाई की अंटियों में कर।
दोहे अपनी बोली में।
यों तु देखो बाछड़े जी बाछड़े जी बाछड़े।
हम से अब आने लगी हैं आप यह मुहरे कड़े॥
छान मारे बन के बन थे आप ने जिनके लिये।
वह हिरन जोबन के मद में हैं बने दुल्हा खड़े॥
तुम न जाओ देखने को जो उन्हें कुछ बात है।
झांकते इस ध्यान में हैं उनके सब छोटे बड़े॥
है कहावत जीको भावे योहि पर मुंडियां हिलाय।
लेचलेंगे आपको हम हैं इसी धुन में अड़े॥
सांस ठण्डी भरके रानी केतकी बोली कि सच।
सबतो अच्छा कुछ हुआ पर अब बखेड़े में पड़े॥
वारीफेरी होना मदनबान का रानी केतकी पर और उसकी बासका सूंघना और उनीदेपन से ऊंघना
उस घड़ी कुछ मदनबान को रानी केतकी के मांझे का जोड़ा और भीना भीनापन और अँखड़ियों का लजाना और बिखरा बिखरा