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कुँवर उदयभान चरित।


कर डाला था अब उनको ढूंढता फिरता हूं कहीं नहीं मिलते और जितनी सकत थी अपनी सी कर चुका हूं और मेरे मुँह से निकला कुँवर उदयभान मेरा बेटा और मैं उसका बाप उसकी सुसराल में सब ब्याह के ठाठ हो रहे हैं अब मुझ पर निपट गाढ़ है जो तुम से हो सके सो करो राजा इन्दर गुरू महेन्दरगिर के देखने को सब इन्द्रासन समेत आप आन पहुंचता है और कहता है जैसा आप का बेटा वैसा मेरा बेटा आप के साथ सारे इन्दरलोक को समेट के कुँवर उदयभान को ब्याहने चढूंगा गुसाई महेन्दरगिर ने राजा इन्दर से कहा हमारी आप की एकही बात है पर कुछ ऐसी सुझाइये जिस में वह कुँवर उदयभान हाथ आवे यहां जितने गवैये और गायने हैं उनको साथ लेके हम और आप सारे वनों में फिरें कहीं न कहीं ठिकाना लग जायगा॥

हिरन और हिरनियों के खेलका बिगड़ना और नये सिरसे कुँवर उदयभान का रूप पकड़ना।

एक रात राजा इन्दर और गुसाईं महेन्दरगिर निखरी हुई चांदनी में बैठे राग सुन रहे थे करोरों हिरन आस पास आन के राग के ध्यान में चौकड़ी भूले सिर झुकाये खड़े थे इसमें राजा इन्दर ने कह दिया कि सब हिरनों पर पढ़के मेरी सकत गुरुके बहुरे भगत मंत्र ईश्वरोबाच एक एक छीटा पानी का दो क्या जानें वह पानी क्या था पानी के छींटे के साथी कुँवर उदयभान और उनके मा बाप तीनों जने हिरनों का रूप छोड़कर जैसे थे वैसे हो जाते हैं महेन्द्रगिर और राजा इन्दर इन तीनों को गले लगाते हैं और पास अपने बड़ी आव