पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/९८

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४३ का पता बाहरी दुनिया को न चल सका और बाकी चीजों पर उनका एका- ‘धिकार बना ही रह गया। अँगठी मछली की भी कुछ ऐसी ही बात है। मैं तो उसके बारे में खुद कुछ जानता नहीं कि वह कैसी चीज है। मंगर लोगों ने बताया कि वह कोई उमदा मछली है जिसे खाने वाले बहुत चाव से खाते हैं । इसी. लिये बाजार में उसकी बिक्री बहुत होती है । वह तो पानी वाला इलाका है । इसलिये वहाँ मछलियाँ बहुत होती हैं । सुखा कर दूर-दूर जगहों में उनकी चालान भी जाती है। इसीलिये पकड़ने वालों को तो फायदा होता ही है, जमींदार को भी खूब नफा मिलता है। उसकी श्रामदनी बढ़ती है। मछली वगैरह की श्राय को ही जल कर कहते हैं। अब सभी लोग या जाई चाहे वही उन मछलियों को पकड़ नहीं सकता तो खामखाइ ठीका लेने वालों में आपस में चढ़ानढ़ी होगी ही। इसीते जमींदार फायदा उठाता है और इने-गिने लोगों को ही मछलियों का ठेका देके साल में न जाने कितने हजार रुपये बना लेता है। दूसरी मछलियों की उतनी पूछ न होने से उन पर रोक-टोक नहीं है । फलतः जोई पकड़ेगा वही जल-कर देगा। जल-कर का भी एक बँधा धाया नियम होता है। उस जमींदारी में और उसी प्रकार महाराजा दरभंगा से लेकर दूसरे जमींदारों को जमींदारियों में इस जल-कर के बारे में ऐसा अन्धेरखाता है कि कुछ कहिये मत । खासकर कोशी नदी जहाँ जहाँ बहती है वहीं यह बात ज्यादातर पाई जाती है । वह यह कि, जमीन में तो नदी बह रही है और फसल होती ही नहीं। फिर भी लगान तो किसान को देना ही पड़ता है । कानून नो टहरा । मगर पानी में मछली वगैरह के लिये जल-कर अलग ही देना पड़ता है। एक ही जमीन पर दो टेक्स, दो लगान । जल-कर तो उस जमीन में जमा पानी पर होना चाहिये जिसमें कभी खेती नहीं होती। मगर यही तो उलटी गंगा चहती है। इसीलिये चौधरी अपनी जमींदारी में यही करते हैं। अब रही अाखिरी यात जो नये चमड़े के एकाधिकार की है। गत यो