सन् १६२६ ई० के दिसम्बर का महीना था । लाहौर कांग्रेस के पूर्व और हमारी बिहार प्रान्तीय किसान सभा बन जाने के बाद ही सरदार बल्लभभाई का दौरा बिहार में हुआ। दौरा प्रान्त के सभी मुख्य-मुख्य स्थानों में हुआ । राय हुई कि नवजात किसान-सभा इससे लाभ क्यों न उठाये । श्री बल्लभभाई हाल में ही किसान आन्दोलन और लड़ाई के नाम पर ही सरदार बने थे। बारदौली के किसानों की लड़ाई के संचालक की हैसियत से ही उन्हें सरदार की पदवी मिली थी। हमने सोचा कि हमारा किसान आन्दोलन उनसे प्रोत्साहन प्राप्त करे । हुआ भी ऐसा ही। जहाँ-जहाँ उनके दौरे का प्रोग्राम था तहाँ-तहाँ ठीक उनके पहले हम किसान-सभा कर लेते और पीछे उसी सभा में वह बोलते जाते थे। कहीं- कहीं उनने हमारा. और हमारी किसान-सभा का नाम भी लिया था और उसे सहायता देने को कहा था । मगर हम तो सभा की तैयारी और लोगों की उपस्थिति से लाभ उठा के किसान का पैगाम लोगों को सुना देना ही बहुत बड़ा फायदा मानते थे।
मुजफ्फरपुर जिले के सीतामढ़ी कसवे में भी एक बड़ी सभा हुई। हमने अपना काम कर लिया था। वह बोलने उठे तो दूसरी-दूसरी बातों के साथ जमींदारी प्रथा पर उनने बहुत कुछ कहा और उसकी कोई जरूरत नहीं है, यह साफ-साफ सुना दिया। उनका कहना था कि तुना है, ये जमींदार बहुत जुल्म करते हैं । ये लोग गरीब किसानों को खूब हो सताते हैं, ये भलेमानस अपने को जबर्दस्त माने बैठे हैं। लोग भी इन्हें ऐसा ही मानते हैं। इसीलिये डरते भी इनसे हैं। मगर ये तो निहायत ही कमजोर हैं। यदि एका पार करके इनका माथा दबा दिया जाय तो भेजा (दिमाग की गूदी) बाहर निकल आये। फिर इनसे क्या डरना?