पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/६३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(६)

यह बात बुरी लगी कि वे इतने सख्त दुश्मन क्यों बनें । मगर बात तो ठीक ही थी । हम उस समय असल में जमींदारी को ऐसा समझते न थे जैसा पीछे समझने लगे। फिर भी यह झल्लाहट बनी ही रही और वे सन् १६३० ई० में हजारीबाग जेल में इसी की सफाई देने हमारे पास श्राये थे। बहुत डरे से मालूम होते थे। मगर उनका डर अन्ततोगत्वा सच्चा निकला, गो देर से । क्योंकि किसान-सभा ने ही उन्हें सन् १९३६-३७ के चुनाव में बुरी तरह पहले असेम्बली में पछाड़ा और पीछे डिस्ट्रिक्टबोर्ड में भी। मालदार लोग दूरदेश होते हैं । फलतः इस खतरे को वे पहले से ही ताड़ रहे थे कि हो न हो एक दिन भिड़न्त होगी।

सभा जो जिले भर की भी नहीं बनी उसका कारण था हमारा फंक- फंक के पाव देना ही । जितनी शक्ति हो उतनी ही जवाबदेही लो, ताकि उसे बखूबी सँभान्न सको, इसी वसूल ने हमें हमेशा जल्दबाज़ी से रोका है। इसी खयाल से हम बाल-इंडिया किसान-सभा बनाने में बहुत अागा- पीछा करते रहे। इसी वजह से ही हमने प्रान्तीय किसान-सभा में पड़ने से भी-उसकी जवाबदेही लेने से भी-बहुत ज्यादा हिचक दिखाई थी। यही कारण था कि जिले भर की जवाबदेही लेने को हम उस समय तैयार न थे। मगर पता किसे था कि दो वर्ष बीतते-बीतते बिहार प्रान्तीय किसान सभा वन के ही रहेगी और न सिर्फ उसके स्थापनार्थ हमें आगे बढ़ना होगा, बल्कि उसकी पूरी जवाबदेही भी लेनी होगी १ आखिरकार सन् १६२६ ई० के नवम्बर महीने में यही हुया और सोनपुर मेले में प्रान्तीय किसान- सभा बनी।

_____:______