उद्गारों पर विश्वास करके बैठे रह जाना सबसे बड़ी नादानो है । ऐन मौके पर या तो ये सारी प्रतिज्ञायें, घोषणायें और प्रस्ताव-उद्गार उनके करने वाले ही स्वयं भूल जाते हैं या उनके न भूलने पर भी उन्हें विवश और असमर्थ बना दिया जाता है कि वे तदनुसार कुछ भी कर न सकें। परिस्थिति और माजदारों के षड्यंत्र उन्हें वेकार और पंगु बना देते हैं। अमेरिका प्रभृति देशों के स्वातत्र्य-संग्राम ने हमें यही पाठ पढ़ाया है। हमें आजादी लेने के बाद पुनरपि अपने ही मालदार भाइयों और उनके संगी-साथियों से जम- कर प्राण-पण से. युद्ध करना ही होगा, खून का दरिया तैर कर पार करना ही होगा। तभी किसानों का राज्य होगा, उनके हाथ में शासन-सत्ता अायेगी; न कि महात्मा गांधी या पंडित नेहरू के कहने या कांग्रेस के प्रस्ताव मात्र से ठीक समय पर उस कथन या प्रस्ताव पर अमल कराने के लिये हमारी अपनी शक्ति चाहिये, तैयारी चाहिये, और यह स्वतंत्र किसान-सभा वही तैयारी है, उसी शक्ति का अभी से संचय है। क्योंकि मौके पर एकाएक शक्ति नहीं पा सकती। जो पहलवान अखाड़े में लड़ने का अभ्यास पहले से नहीं करता, वह एकाएक दूसरे पहलवान को पछाड़ नहीं सकता । स्वतंत्र 'किसान-सभा किसानों के मल्ल युद्ध, अभ्यास और तैयारी का अखाड़ा है ।
कांग्रेस की मजबूती भी इसी प्रकार होगी। किसान-सभा के द्वारा किसानों के हकों के लिये सामूहिक रूप से लड़कर हम किसानों का पूर्ण विश्वास प्राप्त कर सकेंगे और इस प्रकार उन्हें किसान-सभा में सामूहिक रूप से श्राकृष्ट करेंगे। जो वर्ग संघर्ष कांग्रेस कर नहीं सकती, जिसके करने में उसे दिक्कत है, जैसा कि कहा जा चुका है, उसे ही हम कांग्रेसजन किसान- -सभा के जरिये करके किसानों के दिल-दिमागों को जीत लेंगे। क्योंकि भौतिक स्वार्थ की सिद्धि उन्हें हमारे साथ खिंच श्राने को विवश करेगी। यही मानव स्वभाव है । फिर विदेशी सरकार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संघर्ष के समय देश के राजनीतिक मामले में हम आसानी से इसी किसान-सभा के जरिये किसानों को सामूहिक रूप से कांग्रेस के साथी, भक्त और अनुयायी बना डालेंगे। फलतः संगठित एवं शक्तिशाली किसान-समा