उस स्वराज्य के लिये क्यों लड़े। उस सरकार और विदेशी सरकार में नाम मात्र का ही फर्क होगा। असलियत प्रायः एक सी ही होगी। किसान-. मजदूरों की कमाई की लूट तो उसमें भी जारी ही रहेगी। अन्तर सिर्फ यही होगा कि इस समय जो लूट का माल लंकाशायर, मैञ्चेस्टर या इंगलैंड जाता है, वही तब बम्बई, अहमदाबाद, कानपुर, छतारी, दरभगा जायगा । कमाने वाले किसान-मजदूरों को क्या मिलेगा १ ये प्रश्न स्वाभाविक हैं और सारी दुनिया में किये जा चुके हैं। किसान-मजदूरों को सारी शक्ति के साथ प्राण-पण से स्वराज्य के युद्ध में प्राकृष्ट करने के लिये इनका उनके लिये संतोषजनक उत्तर मिलना अाज जरूरी है किसान-सभाः इन्हीं प्रश्नों का मूर्त उत्तर है।
मुसलिम लीग की बात दूसरी है। उसे लड़ना नहीं है या तो उसे यथाशक्ति बाधा डालना है, या अन्त में बिना कुछ किये ही प्राधा हिस्सा लेना है, इसीलिये वह अभी से बँटवारा चाहती है। मगर किसानों को लड़ना है और जम के लड़ना है । उसी लड़ाई को प्राण-पण से चलाने के लिये वह अभी से तय कर लेना चाहते हैं कि लड़ाई का नतीजा उनके लिये क्या होगा । इस प्रकार दोनों में बड़ा फर्क है, यह स्पष्ट है। दोनो के दो रास्ते हैं । एक को लड़ना है और दूसरे को बाधा देना।
यदि उत्तर दें कि कांग्रेस का राज्य होगा तो खयाल होगा कि कांग्रेसः . में मालदारों का प्रभुत्व होने के कारण उसका राज्य तो नामान्तर से उन्हीं. मालदारों का होगा। यदि कहा जाय कि किसानों और मजदूरों का राज्य होगा तो प्रश्न होगा कि क्या कहीं भी यह बात अब तक हो पाई है ? फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, इङ्गलैंड, रूस, इटली आदि सभी देशों में आजादी की लड़ाई के लीडर यही कहते थे कि किसान-मजदूरों के हाथ में शासन होगा। अमेरिका में अंग्रेजी शासन को हटाने के समय ऐसा ही कहां जाता था जैसा यहाँ कहते हैं। मगर वहाँ मालदारों का ही राज्य हुआ और किसान-मजदूर दुखिया के दुखिया ही रह गये, सर्वत्र यही हुआ। यहाँ तक कि रूस में भी यही हुश्रा और पीछे किसान-मजदूरों को पुनरपि लड़