पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/३६

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यदि कांग्रेस को छोड़ा तो उसकी जड़ ही कट जायगी।

लेकिन यह कोई दलील नहीं है, यदि किसान-सभा का संचालन कांग्रेस-जन ही करें तो क्या हर्ज है? तब किसानों को उसके विरुद्ध जाने का मार्ग कौन सिखायेगा? क्या वही कांग्रेसी ही? यह तो विचित्र बात है। और अगर यह बात हो तो आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी? किसानों को सदा कांग्रेस की दुम में बाँध रखना असंभव है। संसार में और भारत में भी वर्ग संस्थायें हैं, यह ठोस सत्य है। फिर किसान इससे अछूते रहें, उन्हें यह वर्ग संस्था की हवा न लगे, यह गैर-मुमकिन है। परिणाम यह होगा कि अभी तो कांग्रेस-जन ही वह वर्ग संस्था बना सकते हैं, बनाते हैं। मगर पीछे कांग्रेस के विरोधी बना के ही दम लेंगे और ये कांग्रेसी लीडर उनका कुछ कर न सकेंगे। फलतः कांग्रेस-विरोधियों का प्रभुत्व किसान-सभाओं पर न हो, सिर्फ यही देखभाल कांग्रेस की दृष्टि से अवश्य की जानी चाहिये जब तक आजादी की लड़ाई जारी है और मुल्क स्वतंत्र नहीं हो जाता। इसके आगे जाना अनुचित काम एवं अनधिकार चेष्टा है। जमींदार हजार उपायों से किसानों को तबाह करते रहें और आप से कुछ नहीं होता मगर ज्यों ही किसान अपनी संघ-शक्ति के द्वारा उनका संगठित रूप से सामना करने की तैयारी करता और एतदर्थ किसान-सभा बनता है कि आप लोग हायतोबा मचाने लगते हैं। यह बात अब किसान भी समझने लगा है और कांग्रेस के लिये यह अच्छा नहीं है।

यदि किसान-सभा कांग्रेस का पुछल्ला नहीं बनती, यदि इसमें किसानों के लिये खतरा है और इसीलिये स्वतंत्र किसान-सभा का बनना अनिवार्य है, तो वह अनेक राजनीतिक दलों तथा पार्टियों की भी दुम न बनेगी। यदि उस पर कांग्रेसी लीडरों की हुकूमत असह्य है, तो फिर पार्टी लीडरों की मुहर भी क्यों लगे? उसकी स्वतंत्रता तो दोनों ही तरह से चौपट होती है और वह मजबूत हो पाती नहीं। हम उसे बलवती वर्ग संस्था बनाना चाहते हैं और ऐसा करने में यदि कांग्रेस बाधक है तो ये पार्टियाँ कम