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( २१३ ) तो धोखा देती हैं। किसान-सभा का पूरा इतिहास और उस सिलसिले को सारी मुसीबतें मैंने अपनी जीवनी में लिखी है। अन्त एक बात कह देनी है। हमारी आदत है तारीखें भूल जाने की । ठीक साल और तारीख याद रखी नहीं सकते इसी तरह स्थानों के नाम भी भूल जाते हैं। ये संस्मरण इस भूल से मुक्त नहीं हो सकते। इसीलिये क्षमा चाहते हैं । हमें इस बात से थोड़ा ढाढ़स मिला जब हमने चीन के महान् कम्युनिस्ट नेता के बारे में पढ़ा कि वे तारीचे याद -रख नहीं सकते हैं । मगर क्षमा तो फिर भी हम चाहते ही है। मुद्रक तया प्रकाशक-केशवप्रसाद खत्री, दी इलाहाबाद ब्लाक. वर्क्स लि०, इलाहाबाद .