पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२५०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १६१) गये। यह भी एक अजीब बात थी। तमाया तो यह हुआ कि मुझे लेने के लिये मेजा गया हाथी मीटिंग खत्म होते न होते वहाँ लौटा। समापति उस सभा में बनाये गये इलाके एक छोटे से जमींदार | मुझे यह बात पीछे मालूम हुई । नहीं तो शायद ही ऐसा होने पाता ) मगर मैंने लेक्चर जो दिया वह तो जमींदारी-प्रथा और जमींदारों के जुल्मों के खिलाफ ही था । फिर भी न जाने सभापति जी कैसे पत्थर का कलेजा बनाके सुनते रहे । मुझे उनके चेहरे से मालूम ही न पड़ा कि वे मेरे भाषण से घबरा रहे हैं । यदि घबराते भी तो मुझे पर्वा क्या थी ? मैं तो अपना काम करता ही। मैंने यह जरूर देखा कि लोग मरत होके मेरी एक एक बातें सुनते थे । मालूम पड़ता था, उन्हें पीते जाते हैं। उनका चेहरा खिलता जाता था, ज्यों ज्यों सुनते जाते थे। मुझे यह भी पता चला कि उसफा के किसान जमींदारों के जुल्मों के खिलाफ लड़ने में जरा भी नदी हिचकते । औरों की तरह पुलिस से भी वे भयभीत नहीं होते । यदि पुलिस जमीदारों या महाजनों का पक्ष अन्यायपूर्वक ले, तो उसले भी उनकी दो दो हाथ हो जाती है । भविष्य के खयाल से यह सुन्दर बात है। हक के लिये मर मिटने की लगन के बिना किसानों के निस्तार का दूसरा गरता हई नहीं। हाँ, सभा के अन्त में एक मजेदार घटना हो गई। कुछ नौजवान लोग स्कूलों या कालिजों के पढ़ने वाले से प्रतीत हुए । उनने यह कहा कि बिना स्वराज्य मिले ही यह श्राप जमीदार-किसान कलह क्यो लगा रहे हैं। थे वे जमींदारो के लड़के । मगर चालाकी से उनने भाजदीदी दलील की शरण ली और कांग्रेसी बन बैठे। मैंने उत्तर दिया कि नगड़े के लगाने की क्या बात १ यह तो पहले से मौजूद दी है। अगर श्रापकी जायदाद कोई लूटने लगे तो क्या स्वराज्य की फिक्र में उसते लपट न परिवार क्योकि मगदने पर तो आपकी ही दलील से त्वराज्य की मास में बाधा होगी। हम तो किसानों को यही बताते हैं कि दो स्वाध्य उन्हें लान है वद कैसा होगा, क्योकि जर्मटारो और किसानो का स्वगम्य एक न होगा- -