( १८१ ) तीन नन्हें बच्चों के साथ एक ओर है, और तीन कुत्ते दूसरी ओर | इन्हों दोनों के बीच वह कुश्तमकुश्ता चालू है। वह घंटों चलता रहा, यह मैंने खुद देखा । पहले कब से था कौन बताये। मगर जबसे मेरी नजर उस पर गई मैं बराबर वह निराली समां देखता था। लड़ाई यों चलती थी। तीनों कुत्ते उस बकरी पर हमला करके चाहते थे कि बच्चों के साथ उसे मार के खा जायँ। मगर उनके जवाब में उन बच्चों को अपने पेट के पास जमा करके वह बकरी मारे गुस्से के अपना माया और सींगें मुकाती और उन पर धावा बोलती थी जिससे वे तीनों ही भाग जाते थे। असल में जान पर खेल के जब वह उन पर टूट पड़ती थी तो वे हिम्मत हार के भाग जाते थे। मगर जब वह रुक जाती थी तो फिर उस पर टूट पड़ते थे। यही तरीका बरोबर घंटों चलता रहा । मेरी नजर एकटक उसी पर टिकी थी। ज्यों ज्यों में नजदीक आता जाता था, त्यों त्यों वह दृश्य देख देख के मन होता था। मेरे शरीर के अंग अंग और रोम रोम खिजते जाते थे। नजदीक याने पर देखा कि बकरी छोटी सी ही थी। मगर गुस्से के मारे मौत की सूरत बनी थी, रणचंडी बनी वह भा काफी परीशान थी। कुत्ते तो थे ही। उसकी अब तक जीत रही, इसलिये हिम्मत बनी था। मगर कुत्तों का इरादा पूरा हो न सका था। वे तो उसका ही और अगर वह न हो तो कम से कम उसके तीनों बच्चों का ही गर्मागर्म खन पीना चाहते थे जो मिल न सका। इसलिये स्वभावतः उनमें पस्ती थी। फिर भी वह कुश्ती चालू थी। इतने में मेरे सामने ही बकरी का मालिक श्रा पहुंचा। उसने कुत्तों को मार भगाया और बकरी को घर पहुँचाया। मेरे लिये वह दृश्य क्यों रोमांचकारी था और मैं उस पर क्यों मुग्ध था, इसकी वजह है। मेरे सामने हमेशा ही यह प्रश्न याया करता था कि किसान सब तरह से पल और पामाल होने के कारण जमींटाग से हँट के मुकाबिला कर नहीं सकते और बिना मुकाबिला कियेन तो जुल्मों से ही उन्हें छुटकारा मिल सकेगा और न उन्हें अपना अधिकार हो
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