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कांग्रेस नेता सदा से महसूस करते थे कि किसान संगठन कांग्रेस से जुदा ही रहना ठीक है। इसीलिये यू॰ पी॰ में पहले किसान समिति बनी और पीछे केन्द्रीय किसान संघ का जन्म हुआ।

फिर लखनऊ कांग्रेस के अवसर पर १९३६ में अखिल भारतीय किसान-सभा की नियमित रूप से स्थापना हुई। पहला अधिवेशन वहीं पर लेखक की ही अध्यक्षता में हुआ। यह बात अब महसूस की जाने लगी थी कि संगठित किसान-आन्दोलन को अखिल भारतीय रूप दिये बिना काम चलने का नहीं। इसीलिये यह बात हुई। १९३६ से लेकर १९४३ तक इसका काम चलता रहा और कोई गड़बड़ी न हुई। १९३६, १९३८ और १९४३ में लेखक इसका अध्यक्ष और शेष वर्षों में प्रधान मंत्री रहा। १९३७ में प्रोफेसर रंगा, १९३९ में आचार्य नरेन्द्रदेव, १९४० में बाबा सोहन सिंह भखना, १९४२ में श्री इन्दुलाल याज्ञिक अध्यक्ष थे।

उसके बाद कम्यूनिस्टों की नीति ने ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी कि वे अकेले रह गये और शेष सभी प्रगतिशील विचार वाले वामपक्षी उनसे जुदा हो गये। कुछ दिन यों ही गुजरे। इसी दर्म्यान १९४२ के राजबन्दी जेलों से बाहर आने लगे और १९४५ के मध्य से ही आल इंडिया किसान-सभा के पुनः संगठन का काम लेखक तथा टण्डन जी के अथक उद्योग से शुरू होकर गत ९ जुलाई १९४६ को बम्बई में "हिन्द किसान-सभा" के नाम से पुनरपि उसका संगठन हो गया है। उसके सभापति श्री पुरुषोत्तम दास जी टण्डन और संगठन मंत्री यह लेखक हैं। अन्यान्य मंत्रियों तथा मेम्बरों को मिलाकर २५ सज्जनों की कमिटी भी बनी है, जिनमें चार सदस्य अभी तक चुने नहीं गये हैं।

संक्षेप में भारतीय किसान-आन्दोलन का यही क्रमबद्ध विकास है, यही उसकी रूप-रेखा है। भारत के विभिन्न प्रान्तों में उसकी शाखायें हैं, जिनमें कुछ तो सक्रिय हैं और कुछ शिथिल। परन्तु सबों को पूर्ण सक्रिय बनाने का भार संगठन-मंत्री पर दिया गया है। वह इस महान्