२३ हमने जो कुछ पूर्व प्रसंग के अन्त में कहा है उसको त्यष्टीकरण एक दूसरी घटना से हो जाता है। एक दिन जेल के भीतर ही हमें आश्चर्य में डूबने के साथ ही बहुत तकलीफ हुई जब हमने कुछ हिन्दुओं को एक मौलवी साहब की आलोचना करते सुना। उनके बोलते बोलते कृष्ण जी को 'हजरत' कह दिया था। यही उनका महान् अपराध था। हम तो समझी न सके कि माजरा क्या है । मगर पीछे बहुत सी बातें याद आई। उसके पहले एक सजन ने बोलने में जब 'दृष्टिकोण' शब्द का प्रयोग किया था तो एक मुसलमान साहब ने पूछा कि इसका मतलब क्या है ? जब उनने मतलब समझाया तो मुसलमान बोले कि बोलने में भी ऐसा ही क्यों नहीं बोलते ताकि सभी लोग समझ सकें। उनका इतना कहना था कि वह हिन्दू सजन आपे से बाहर हो गये और तमक के कहने लगे कि हम आपके लिये या हिन्दू-मुसलिम मेल के, हिन्दुओं की संस्कृत और उनके साहित्य को चौपट न करेंगे। इस पर मामला बढ़ गया। मगर हमें उससे यहाँ मतलब नहीं है। हमें इतना कह देना है कि सचमुच ही 'दृष्टिकोण' का अर्थ आसानी से न तो श्राम हिन्दू जनता ही समझ सकती है और न मुसलिम लोग ही जान सकते हैं। और अगर कोई इस पर इतराज करता है तो गांधीवाद की माला जपने वाले साहित्य और हिन्दू संस्कृति के नाश का हौवा खड़ा करते हैं। हालांकि किसानों और गरीबों की भलाई के ही लिये वे जेल आये हैं ऐसी दहाई देते रहते हैं। मगर जरा भी नहीं सोचते कि उनकी यह भाषा कितने प्रतिशत किसान समम सकते हैं। और जब बात ही न समझेंगे तो साथ कहाँ तक देंगे। लेकिन अगर 'हजरत' शब्द को देखा जाय तो उस पर इसलिये उज नहीं हुआ कि लोग समझ न सके । हम तो देखते हैं कि बरावर ही
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