पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२०४

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ring । जैसा (१४७.) भड़क के भाग जायगी और वे हजरत दूध निकला न सवेंगे। यह बात छोटे को पसन्द आई और उसने फौरन 'अच्छा' कह दिया। इसके बाद भैंस दूहने के समय घर लाठी लिये तैयार बैठा रहा और ज्योंही बड़े भैया दूहने की तैयारी करने लगे कि उसने दौड़ के उसके मह पर तडातड़ लाठियाँ बरसानी शुरू की। बड़े साहब हैरत में थे और जब तक "हैं, हैं" करके उसे रोकने की कोशिश करें तब तक भैंस जाने कहाँ भाग गई । बड़े भैया को इसके रहस्य का पता न लगा । उनने छोटे से पूछा तो उत्तर मिला कि मुँह तो मेरे हिस्से का है न ? फिर उस पर मैंने जो चाहा किया, आपने अपने हिस्से पर मन चाहा अब तक किया है । फिर 'हैं हैं' करने या बिगड़ने का क्या सवाल १ बड़े भाई ने समझा कि यह सनक तो नहीं गया है। उसने छोटे को समझा बुझा के तथा हिंसा करने और भैंस को कष्ट देने को अनुचित बता के उसे टंडा किया । उसने समझा कि अब आगे ऐसा न करेगा । मगर दूसरे समय ज्योंही दुहना शुरू हुआ कि उसने फिर वही लाठीकांड शुरू किया । पूछने पर जवाब भी वही दिया। अब तो बड़े भैया की पिलही चमकी । उनने सोचा कि हो न हो दाल में काला अवश्य है । इसे कोई गहरा गुरू मिल गया है । नहीं तो यह तो भोला-भाला आदमी है । खुद ऐसा कभी नहीं करता । और जब उसने अच्छी तरह पता लगाया तो मालूम हो गया कि छोटे भाई का कोई काइयाँ दोस्त आया है जिसने उसे यह बात सुझा दी है । अब वह बिना आधा दूध लिये नहीं मानने का । अब मेरी दाल हगिज न गलेगी। इसलिये हार कर उसने छोटे भाई से कहा कि क्यों तूफान करते हो ? भैंस भी खराब हो रही है . और दूध भी किसी को मिल नहीं रहा है-न तुम्हें और न मुझे। जायो आज से जितना दूध होगा उसका अाधा तुम्हें जरूर बाँट दिया करूँगा। तुमने मुझसे यही बात पहले ही क्यों न कह दी कि अाधा दूध चहते हो मैं उसी समय तुम्हारी बात मान लेता। इस पर छोटा भाई खुशी खुशी अपने मित्र के पास गया और उससे उसने कह सुनाया कि आपका बताया उपाय सही निकला। अब हमें रोज