( १४६ ) फिर तो वह दौड़ा दौड़ाया बड़े भाई के पास फौरन गया और ऐन मैंस दुहने के समय उससे कहने लगा कि आप यह ज्याना काम करते हैं । एक काम मेरा है मैंस के खिलाने का। एक ही श्रापका होना चाहिये उसके गोबर-मूत को नफ करने का । फिर यह दूसरा काम आप क्यों कर रहे हैं ? पहले मैं यह समझ न सका था। अभी अभी यह बात मैंने जानी है। इसलिये आपको यह काम करने न दूंगा। नहीं तो मुझे एक काम इसके बदले में दीजिये। इस पर बड़ा भाई घबराया सही । लेकिन सोच के बोला कि पिछला श्राघा माग मेरा है और अगला प्राधा तुम्हारा । अपने अपने माग में जिसे तो करना है करे । इसमें रोक-टोक का क्या सवाल १ काम का टवारा तो नहीं है । यहाँ तो मैंस का बँटवारा है और उसके दो हिले किये हैं। यदि तुम खामखाह काम ही चाहते हो तो मैंस के मुंह और आँखों पर तेल- वेल लगाया करो और सींगों पर भी। या नब मैं इसे दुहता हूँ तो इसके मुँह पर से मक्खियाँ और मच्छर वगैरह हाँका करो । बस, और ज्यादा चाहिये क्या ? इस पर छोटा भाई निरुत्तर होके चला गया और आगन्तुक ने सारी बात उसने कह सुनाई। इस पर आगन्तुक ने कहा कि घरानो मत। अभी काम हुआ जाता है। अगले हिस्से के लिये जो काम उसने बताया है वह तो उसीके फायदे का है । इस्ले तो दूध निकालने मे उसे और मी त्रासान होगी। लेकिन जब उसने मेंस को दुहने का काम शुरू किया था तो तुमने पूछा तो या नहीं कि यह काम करें या न करूँ । पिछला भाग उनी का होने के कारण उसने उस पर जो काम चाहा किया । दुहने से उसे फायदा होता है। इसलिये वही काम करता है। ठीक उसी प्रकार तुम मी अपने फायदे का काम आगे के माग में करो। उसने पूछने की क्या बात ? इन पर छोटे ने पूछा कि अच्छा श्राप ही बताइये कि किम काम के करने से मेरा फायदा होगा? उसने उत्तर दिया कि ज्योंही वह हजरत दूइने बैठे त्योंही मैंत के मह पर बड़ावद लाठियां लगाने लगे। इस मैंट
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