( १३६ ) अब एक दूसरा सवाल पैदा हुआ। जितने मेम्बर चुने गये उनमें पटना और शाहाबाद जिलों एक भी न थे और किसानों के प्रश्नों के खयाल से ये जिले बहुत ही महत्त्व रखते हैं । सच बात तो यह है कि मैं इस सवाल को न तो उसी समय समझ सका और न अब तक समझ पाया हूँ । यदि सभी जिलों के मेम्बर न होंगे तो उससे क्या ? मैं तो अच्छी तरह जानता हूँ कि अपने जिले की किसान समस्याओं की पूरी जानकारी शायद किसी को आज तक भी हो। जानकारी तो उन्हें हो जो उसमें दिलचस्पी रखते हों और उसकी टटोल में बराबर रहते हों । इधर किसी को न तो इसकी पर्वा है और न इसके लिये फुर्सत । फिर इस सवाल से क्या मतलब १ विहार के कुल सोलह जिलों को मिलाकर जब सिर्फ नौ मेम्बरों की ही जाँच कमिटी बनी तो यह सवाल उठता ही कैसे 'कि फला जिले का कोई नहीं है ? हाँ, किसी का नाम कमिटी के मेम्बरों में होने से अखबारों में छपे और वह इस प्रकर नामवरी हासिल करे यह बात जुदा है और अगर इस दृष्टि से पटना शाहाबाद से किसी को देना हो तो हो। खैर, कुछ देर के बाद किसी ने कहा कि बाबू गंगाशरण सिंह पटने के ही हैं। उन्हें क्यों न दिया जाय १ इस पर प्रायः सभी बोल बैठे कि ठीक है, ठीक है । अन्त में तय भी पा गया कि वह भी एक मेम्बर रहें और वह तथा बाबू कृष्णबल्लभ सहाय-दोनों ही-जाँच कमिटी के मंत्री मैं चुपचाप बैठा आश्चर्य में दूब रहा था । बाब गंगाशरण सिंह न सिर्फ बिहार प्रान्तीय किसान कौंसिल के मेम्बर थे, बल्कि बिहार प्रान्तीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की कौंसिल ऑफ ऐक्सन के भी सदस्य और पक्के सोशलिस्ट माने जाते हैं। मैं तो जाँच कमिटी में इसलिये खतरनाक माना गया कि किसान सभावादी हूँ। मगर सोशलिस्ट लोग तो ठेठ क्रांति तक पहुँच जाने वाले माने जाते हैं। वह तो क्रांति से नीचे की बात करते ही नहीं । फिर भी गंगा बाबू, बाबू राजेन्द्र प्रसाद और उनके साथियों को न सिर्फ कबूल थे, बल्कि उन लोगों ने खुद उनका नाम पेश किया। यह एक निराली बात थी -
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