( १३८ ) चे नहीं चाहते कि मैं जाँच कमिटी में रहूँ । मगर उसीके साथ उनकी दिक्कत यह है कि मुझे रखने के लिये मजबूर हो रहे हैं, जब तक कि मैं खुद रहने से इनकार न कर दूं। मैं समझने में लाचार था कि ऐसा क्यों हो रहा है । मुझे क्या पता था कि उन लोगों के भीतर पाप भरा था कि न रिपोर्ट तैयार होगी और न छपेगी । सिर्फ चुनाव के पहले जाँच का ढकोसला खड़ा करके वे लोग किसानों को केवल ठगना चाहते थे कि वोट दें। यह भंडाफोड़ पीछे हुआ जब कि उनने रिपोर्ट का नाम ही लेना बन्द कर दिया । बल्कि जब मैंने पीछे उनकी यह हालत देख के फैजपुर में आल इंडिया कांग्रेस कमिटी में यह सवाल उठाया तो वे लोग बुरी तरह बिगड़ बैठे। मैंने वहाँ भी उन्हें फटकारा और ऐसा सुनाया कि बोलती ही बन्द थी। हाँ, तो यह हालत देखके मैंने खुद कहा कि यादि श्राप लोगों की यही मर्जी है तो लीजिये मैं खुद रहने से इनकार करता हूँ। क्योंकि देखता हूँ कि यदि ऐसा नहीं करता तो जाँच कमिटी ही न बनेगी और पीछे सब लोग मुझी को इसके लिये कसूरवार ठहराके खुद पाक बनने की कोशिश करेगें । "मगर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा । इसलिये खुद हट जाता हूँ। लेकिन यह कैसे होगा कि आप लोग जोई रिपोर्ट चाहेगें छाप देगें और मैं मान लूँगा ? मुझे रिपोर्ट की तैयारी के पहले और छपने के पहले भी पूरा मौका तो मिलना ही चाहिये कि बहस करके सम्भव हो तो उसे कुछ दूसरा रूप दिला सकूँ । इस पर सभी एकाएक, बोल बैठे कि यह तो होगा ही। जाँच के समय भी आप रह सकते हैं । मगर जाँच का काम पूरा होने और रिपोर्ट लिखने के पहले एक बार कमिटी श्रापसे सभी बातों पर काफी विचार कर लेगी और आपको पूरा मौका देगी कि उसे प्रभावित करें। फिर जब रिपोर्ट तैयार -होगी तो छपने के पहले थापके पास उसकी एक कापी जरूर भेजी जायगी और यदि आप चाहेंगे तो कमिटी से फिर बहस करके उसमें रद्द-बदल करवा सकेंगे। इस पर मैंने कह दिया कि धन्यवाद ! में इतने से ही -संतोष कर लेता हूँ। तब कहीं जाकर रजेन्द्र बाबू और दूसरों का -धर्मसंकट टला।
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