पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१८९

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( १३२ ) . की हालत में पड़ा रो रहा था। शहर के दो एक प्रतिष्ठित और पढ़े-लिखे लोग हमसे वहाँ मिलने आये । यह भी पता चला कि उन्हीं लोगों ने हमारी सभा का भी प्रवन्ध किया है। इन्दुलाल जी से उनका पुराना परिचय था। हमें खुशो इस बात की थी कि मध्यम वर्गीय पढ़े-लिखे लोग हमारे भी साथ है । उन्हीं के नाम से सभा की नोटिसें भी बँटी थीं । सभा का समय शाम होने पर था जब कि चिराग जन जाँय । हम भी निश्चित थे। क्योंकि भीतरी सनसनी और हमारे खिलाफ की गई तैयारी का हमें पता न था। दूसरों को भी शायद न था। नहीं तो हमें बता तो देते ताकि हम पहले से ही सजग हो जाय । मगर विरोधियों ने गुपचुप अपनी तैयारी कर ली थी जरूर। जब शाम होने के बाद हम सभा में चले तो शहर के बीच में जाना पड़ा। हमें ताज्जुब हुआ कि यह क्या बात है ? घने मकानों के बीच कहाँ जा रहे हैं यह समझना असंभव था । इतने में हम ऐसी जगह जा पहुंचे जो चारों ओर ऊँचे मकानों से घिरी थी। बीच में जो जगह खाली थी वहीं देखा कि बहुत से सफेदपोश लोग जमा हैं । सब के सब खड़े थे। वैठने के लिये कोई दरी-वरी या बिछावन भी वहाँ न दीखा । हमने सममा कि यों ही किसी काम से ये लोग खड़े हैं और आगे चनने लगे। लेकिन हमें बताया गया कि यही सभा स्थान है । हमें ताज्जुब हुआ कि शहर की सभा और उसकी ऐसी तैयारी ! हम समझी न सके कि क्या बात है। इतने में किसीने इशारा कर दिया कि वही स्वामी जी हैं। इशारे का पता हमें तो न लगा । मगर विरोधियों की तैयारी ऐनी थी कि वे किसी के इशारे से समझ जा सकते थे। वस, फिर कुछ कहिये मत । हमें कोई बैठने को भी कहने वाला न दीखा । यहाँ तक कि किसी ने वात भी न की और चारों ओर से एक अजीत सी सी' की आवाज अाने लगी। वह अावाज हमें पहले ही पहल सुनने को मिली। हमने हजारों किसान-सभाएँ की। विरोधियों के मजमे में हमने व्याख्यान दिये यहाँ तक कि हरिपुरा के पहले सूरत जिले में बिलिमोड़ा स्टेशन