( १३० ) घारिया के रखने से पड़ा है। जंगल में लकड़ी वगैरह काटने में इससे बड़ी आसानी होती है। हमें इस बात से खुशी हुई कि इन लोगों ने, जो सदा कांग्रेस के विरोधी रहे, न सिर्फ हमारी किसान-सभा को अपनाया, बल्कि इस काम में बड़ी मुस्तैदी दिखाई । उनने इसे अपनी चीज मान ली। इसका प्रमाण हमें उसी यात्रा में प्रत्यक्ष मिला । साहुकारों ने जो उन्हें आज तकः बेखटके लूटा था उससे बचने का रास्ता उन्हें किसान-सभा में ही दीखा । क्योंकि सभा की नीति इस मामले में साफ है । यही कारण है कि वे इस ओर झुके, गो कांग्रेस से अलग रहे । उसकी नीति गोल-मोल जो ठहरी । खेड़ा जिले के गांवों में घूमते-घामते हम डाकोर से सात ही आठः मील के फासले वाले रेलवे स्टेशन कालोल पहुंचे। यह एक अच्छा शहर है । यहाँ व्यापारी और साहुकार बहुत ज्यादा बसते हैं । हमारे दौरे से इनके भीतर एक प्रकार की हड़कम्प मच चुकी थी, गोकि हमें इसका पूरा पता न था । सरदार बल्लभ भाई के गण लोग भी चुपचाप बैठे 'न थे। हम उनके गढ़ पर ही धावा जो बोल रहे थे । जो गुजगत अाज तक गांधीवाद का किला माना जाता था वहीं किसान-सभा की प्रखर प्रगति उन नेताओं को बुरी तरह खल रही थी। इसीलिये हमारे खिलाफ अंट-संट प्रचार करके और हमें कांग्रेस-विरोधी करार देके उनके गण मध्यम वर्गीय लोगों को हमारे विरुद्ध खूब ही उभाड़ रहे थे । और कालोल शहर तो मध्य वर्गीय लोगों का अड्डा ही ठहरा । एक बात और भी हो गई थी। उसके पूर्व देहातों में जो हमारे कई लेक्चर हो चुके थे उनमें साहुकारों और सूदखोरों की लूट का हमने खासा भंडाफोड़ किया था। हमने कहा था कि किसानों के सभी कर्ज मंसूख कर दिये जायँ । इससे साहुकारों में खलबली मचना स्वाभाविक था। उनने समझा कि यह तो हमारा भारी दुश्मन खड़ा हो गया। वे मानते थे कि यदि ऐसे लेग्चर किसानों में होने लग जाय तो वे हमारी एक न सुनेंगे, निडर हो जाएँगे और हमारा दिवाला ही बुलवा देंगे। पंचमहाल जिले के गुसर मौजे में पीछे चलके श्री जवेर भाई नामक किसान ने ऐसा किया भी, ,
पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१८७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।