( १२६ ) के कानून तोड़ने पर भी सरकार तरह दे जाती है। उनके रुपये और प्रभाव के चलते इसके लिये बहाने तो सरकार को मिली जाते हैं। पुलिस उसकी रिपोर्ट करती ही नहीं। फिर सरकार क्या करे । और अगर कहीं एक दो जगह किसान सिर उठाने पाये तो फिर गजन हो जाने का डर जो रहता है। क्योंकि "बुढ़िया के मरने का उतना डर नहीं, जितना यम का रास्ता खुल जाने का रहता है !" बड़ौदा राज्य में किसानों को उन लड़ाइयों ने यह बात साफ कर दी। अमदाबाद की सभा के बाद हमारा दौरा था खेड़ा जिले में-उसी खेड़ा जिले में जो न सिर्फ श्री इन्दुलाल जी का जिज़ा है, बकि सरदार वल्लभ भाई का भी जन्म उभी जिले में हुया है। हमारी मीटिंगें ठेठ देहातों में थों । स्टेशन से उतर के हमें कई दिन देहात देहात ही घूमते रहने और इस तरह डाकोर के पास रेलवे लाइन पकड़ने का मौका मिना । कुछ दूर लारी से और बाकी ज्यादा जगहें बैलगाड़ी से हो तय करनी पड़ों। इस बार हम ऐसे इलाके में गये जहाँ अाज तक कांग्रेस का कोई खास असर होई न पाया है। इसलिये हमें इस बात से बड़ी प्रसन्नता हुई । अनुभव भी बहुत ही मजेदार हुए। असल में खेड़ा जिले के बहुत बड़े हिस्से में क्षत्रियों की एक बहादुर कोम बसती है जिसे धाराजा कहते हैं। ये लोग अहमदाबाद जिले में भी खासी तादाद में पाये जाते हैं । हमें इस बात से बड़ी तकलीफ हुई कि सरकार ने इस दिलेर कोम को जरायम पेशा करार दे रखा है। असल में विदेशी सरकारी तो सदा से यही नीति रही है कि लोगों में मर्दानगी का माद्दा रहने हो न दिया जाय । पर अफसोस है कि कांग्रेसी मंत्रियों ने मी इस कलंक को मिटाने की कोशिश न को, जिनसे धाराला लोग अब भी वैसे ही माने जाते हैं। पहले गांधी जी के नवजीवन' और 'यंग इंडिया' में पढ़ के हमें भी इनके बारे में यही गलत धारणा थी । परन्तु दौरा करने पर हमे पता चला कि सारी बातें गलत हैं। ये लोग याने पास लम्मे लन्दे दाव लाठी में लगाके रखते हैं जिसे धारिया कहते हैं। पाराला नाम इटो , ६
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